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Haryana

भद्रकाली एकादशी सूक्ष्म रूप से मनाई गई

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Kurukshetra Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 5 जून। माँ भद्रकाली शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र में आज शनिवार 5 जून को भद्रकाली एकादशी सूक्ष्म रूप से मनाई गई। पीठाध्यक्ष श्री सतपाल शर्मा जी ने सर्वप्रथम माँ भद्रकाली जी को पंचामृत – दूध, गंगा-जल, शहद, घी और दही से स्नान करवाया और उसके पश्चात माँ को पुष्प, नारियल, बेल पत्र, चंदन, पान और इत्र अर्पित किए गए। मंदिर में मंत्रोचारण के साथ माँ के स्वरूप का विशेष श्रृंगार, ज्योति प्रज्ज्वलित की गई और ततपश्चात आरती की गई। आरती पश्चात  माँ को हलवा-चना, आलू-गोभी पूरी, कढ़ी-चावल, दही-भल्ले, आम-रस इत्यादि का भोग लगाया गया। इसके पश्चात विश्व पर्यावरण दिवस के महत्त्व को देखते हुए आज तुलसी का पौधे भी मंदिर में लगाये गए। कोरोना महामारी के कारण परलोकगमन करने वाले मनुष्यों की सद्गति, उनकी आत्मिक शांति और उनको मोक्ष प्राप्ति, के लिए प्रार्थना की गई। पीठाध्यक्ष जी ने बताया कि हिंदू धर्म के व्रतों में मां भद्रकाली व्रत का खास महत्त्व है. उन्होंने बताया कि हर साल पंचांग के मुताबिक़ ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मां भद्रकाली एकादशी मनाई जाती है। इसे अपरा एकादशी, अचला एकादशी एवं जलक्रीडा एकादशी भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि आज भद्रकाली एकादशी की तिथ‍ि 5 जून शन‍िवार की सुबह 4 बजकर 7 मिनट पर प्रारम्भ होकर, 6 जून रव‍िवार की सुबह 6 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। उन्होंने ये भी बताया कि वैसे तो देश में जगह जगह माँ भद्रकाली जी के पावन मंदिर है, लेकिन फिर भी मुख्य पूजा बंगाल, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, तमिलनाडु, हिमाचल और आंध्रप्रदेश में की जाती है। माँ भद्रकाली जी को दक्षजित, दारुकाजित, रुरुजित व महिषाजित इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता ये भी है कि महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने पांडवो सहित माँ भद्रकाली जी का पूजन किया और युद्ध विजय कामना की।
पीठाध्यक्ष जी आगे बताया कि इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है। श्रीमती शिमला देवी जी ने संध्याकालीन महाआरती   की और माँ से सभी के सुखी जीवन की कामना की। उन्होंने माँ भद्रकाली एकादशी के दिन माँ से प्रत्येक जीवन में अपनी सेवा उनके दरबार में ही मांगी। माँ भद्रकाली शक्तिपीठ, देश का एकमात्र शक्तिपीठ है, जहाँ पर पूजा-आरती पहले भी महिला शक्ति  गुरु माँ सरबती देवी जी द्वारा की जाती थी और अब श्रीमती शिमला देवी जी के द्वारा की जाती है।
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