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कोराना वायरस के कारण अस्पतालों में हो रहे हैं स्थाई बदलाव

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New Delhi Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 25 जुलाई दुनिया भर में लाखों लोगों की मौत का कारण बनने वाले नोवेल कोरोना वायरस के कारण दिल्ली और एनसीआर सहित देश के अनेक अस्पतालों ने संक्रमणों को फैलने से रोकने के लिए व्यापक पैमाने पर बदलाव किए हैं और इनमें से कई बदलाव अब स्थाई तौर पर बने रहेंगे।
नई दिल्ली के फोर्टिस-एस्कार्ट हार्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट के न्यूरोजसर्जरी विभाग के निदेशक डा. राहुल गुप्ता ने कहा कि अस्पतालों में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए नियमित समय के अंतराल पर सावधानी के साथ हाथ धोना तथा मास्क, ग्लोब और हास्पीटल स्क्रब का प्रयोग करना, अस्पताल आने वालों की अस्पताल के गेट पर जांच, उनके लिए मास्क का प्रयोग और सोशल डिस्टेेंसिग के दिशा निर्देशों का पालन करना अब अनिवार्य हो गया है और ये बदलाव अब हमेशा के लिए हो गए हैं। इसके अलावा अब अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा मरीजों तथा उनकी देखभाल करने वालों की थर्मल सेंसर के जरिए प्रवेश द्वार पर जांच, उनसे पिछले 15 दिनों के दौरान उनकी यात्रा संबंधी विवरणों के अलावा बुखार, शरीर में दर्द, कोल्ड, कफ या अन्य श्वसन संबंधी लक्षणों के बारे में पूछताछ अब जरूरी हो गई है। ऐसे लक्षण या यात्रा संबंधी इतिहास होने पर आगंतुक को चिकित्सा परिसर के बाहर ही रहने तथा आगे की निर्देशों के लिए उन्हें संक्रामक रोग (आईडी) विशेषज्ञ से मिलने के लिए कहा जा रहा हे।
उन्होंने बताया कि अस्पतालों में अब मरीजों एवं डाक्टरों के बैठने की व्यवस्था में भी व्यापक बदलाव किया गया है और ये बदलाव स्थाई होने वाले हैं। कई अस्पतालों में वेटिंग एरिया से कुर्सियां हटा दी गई है। केवल बहुत बीमार या कमजोर मरीज़ों के लिए ही सोशल डिस्टेंसिंग के दिशा निर्देशों के अनुसार कुर्सियां रखी गई है।
डा. राहुल गुप्ता ने बताया कि रोगियों को या तो अकेले और अनिवार्य होने पर एक परिचारक को अपने साथ अस्पताल लाने के लिए कहा जाता है और दोनों को मास्क पहनने के साथ-साथ उपचार परिसर में प्रवेश करते ही अपने हाथों को साफ करने के लिए कहा जाता है। वेटिंग हॉल में दो व्यक्तियों के बीच 3 फीट का अलगाव होता है। रिसेप्शन के कर्मचारियों को मरीजों से अलग रखा जाता है। इसके लिए तीन फीट की दूरी के लिए क्यू-मैनेजर बनाया गया है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो हास्पीटल के सर्जन डा. अभिशेक वैष ने कहा कि अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के कार्यालयों में भीड़भाड़ तथा लोगों की आवाजाही को कम करने के लिए कई हाॅस्पिटल एवं चिकित्सक मरीजों को यह सलाह दे रहे हैं कि वे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ही परामर्श लें। कई तो इसे लागू भी कर रहे हैं। किसी डाॅक्टर के यहां या किसी हेल्थ केयर सेंटर जाने के बजाय रिमोट केयर की मदद से मरीज को क्लिनिकल सेवा प्रदान की जा सकती है। कोविड-19 के पहले कई हेल्थ केयर प्रदाता रिमोट केयर को लेकर दुविधा में थे लेकिन अब जब कई क्षेत्रों में सोशल डिस्टेंसिंग को अनिवार्य बना दिया गया है तब चिकित्सक भी इसे अपनाने लगे हैं। आने वाले समय में टेलीमेडिसीन का प्रयोग भी बढ़ने वाला है।

  डा. अभिशेक वैष ने कहा कि इस महामारी के समय स्पर्शरहित..टचलेस.. इंटरफेस एवं इंटरैक्शन को महत्व दिया जा रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में यह अधिक देखने को मिल सकता है। कोविड-19 ने हममें से ज्यादातर को उन सभी स्पर्श की जाने वाली (टचेबल) सतहों के प्रति अति-संवेदनशील बना दिया है जो संक्रमण को फैला सकती है इसलिए कोविड-19 के बाद की दुनिया में, इस बात का अनुमान है कि हमारे पास कम टच स्क्रीन होंगे और अधिक से अधिक वॉयस इंटरफेस और मशीन विजन इंटरफेस होंगे।
उन्हेांने कहा कि कोरोना वायरस के कारण अब हम टेलीमेडिसीन के जरिए हम मरीजों की उनकी जरूरत के अनुसार मदद कर रहे हैं। डिजिटल जगत ने हमारे लिए जागरूकता के एक मार्ग को खोला है और इसकी मदद से हम वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मरीजों को सलाह दे सकते हैं।
मेदांता मेडिसिटी के कैंसर इंस्टीच्यूट के रेडिएशन ओंकोलाॅजी की प्रमुख डाॅ. तेजिन्दर कटारिया के अनुसार अब अस्पतालों में सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखने के लिए, वेटिंग क्षेत्र से पत्रिकाओं, पुस्तकों और समाचार पत्रों को हटा लिया गया है। कई अस्पताल में हर प्रयोग के बाद हर मरीज द्वारा उपयोग में लाई गई सामग्रियों को साफ करने के लिए खास विधि लागू की है और हाउस कीपिंग कर्मचारी उस विधि का पालन कर रहे हैं। हर चार घंटे में हाउस कीपिंग कर्मचारी सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीच) की घोल से डोर-नॉब, हैंडल, कंप्यूटर मॉनिटर, बैनिस्टर, फ्लोर, चमकदार सतहों को साफ करते हैं। सभी प्रवेश द्धार को खुला रखा जाता है ताकि लोगों द्वारा इनके छूने की आशंका कम से कम हो। अनेक अस्पतालों में कोविड-19 के संदिग्ध मरीजों के लिए पूर्ण रूप से संक्रामक रोग (आईडी) विभाग बन गया है। कैंसर जैसी बीमारियों के मरीजों के लिए अलग से एक प्रवेश द्वार (ग्रीन काॅरिडोर) बनाया गया है।
नोएडा के यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डाॅ. कनिका अग्रवाल कहती हैं कि अस्पतालों ने गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक सावधानियां बरतनी शुरू कर दी है। अस्पताल में सामाजिक दूरी के नियमों को ध्यान में रखते हुए प्रवेश द्वार से लेकर ओपीडी क्षेत्र तक मरीजों की फ्लू स्क्रीनिंग होती है। प्रसूति वार्ड में प्रसव के दौरान पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरणों का समुचित इस्तेमाल होता है। हर डिलीवरी और सीजेरियन प्रक्रिया सम्पूर्ण पीपीई किट पहन कर की जाती है। हमारे लेबर रूम और ऑपरेशन थिएटर को नियमित रूप से सेनेटाइज किया जाता है। हमारे यहां पूर्व बुकिंग के साथ – साथ ‘वाॅक इन’ मामले भी आते हैं और इन सभी मामलों में समुचित रूप से विस्तृत यात्रा इतिहास लिया गया है, जोन चेक (ग्रीन, आरेंज रेड) किया जाता है और बुखार, खांसी तथा सर्दी जैसे लक्षणों की जाँच की जाती है।
उन्होंने बताया कि उनके अस्पताल में बच्चों के लिए एक अलग से विषेश आउट पेशेंट क्षेत्र (ओपीडी) शुरू किया है। इसके कारण बच्चे अस्पताल आने वाले अन्य लोगों के संपर्क में आने से बचे रहेंगे। इस क्षेत्र में काम कर रहे हेल्थकेयर पेशेवर भी संक्रमण के नियंत्रण की सभी आवश्यक सावधानियां बरतते हैं।
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