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Faridabad NCR

कवित्री सलोनी चावला द्वारा प्रख्यात डाक्टर व आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ के.के. अग्रवाल को श्रद्धांजलि स्वरूप लिखी कविता

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 29 मई। फरीदाबाद की प्रसिद्ध कवित्री सलोनी चावला ने प्रख्यात डाक्टर व आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ के.के. अग्रवाल को श्रद्धांजलि अर्पित एक कविता समर्पित की।
कवित्री सलोनी चावला ने कहा कि डा. अग्रवाल ने अपने जीवन में डा. रहते हुए जिस रास्ते समाज की सेवा की एवं कोरोना महामारी के दौरान करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया। उनके बारे में जितना कहा जाए व लिखा जाए उतना कम है। आने वाली पीढिय़ां हमेशा उनको याद करेगी। उनकी लिखित कविता इस प्रकार है।

डा. के के अग्रवाल को श्रद्धांजलि
सलोनी चावला

चंद रह गई थीं सांसें अपनी,
फिर भी दूजों को सांसें दीं ।
थी आशा नहीं खुद जीने कीए
फिर भी दूजों को आशा दी !!

तुम वह गुल थे जो मुर्झा रहे थे,
पर जीवन की खुशबू फैला रहे थे।
थी मौत खड़ी तुम्हारे दर पर,
और तुम दूजों को उससे बचा रहे थे !!

तुम्हारी हर डूबती हुई सांस,
हर नई सांस को जन्म देती रही।
तुम्हारी जिदगी की रात अमावस थी,
पर वह दूसरों को रौशनी देती रही !!

यह मौत नहीं…..  है  वीरगति,
तुम दवा के क्षेत्र के फौजी थे।
टूटी नावों को दिया किनारा,
तुम वह जख्मी मांझी थे !!

लाखों सलाम डॉक्टर अग्रवाल,
तुम डॉक्टर से ज्यादा रिश्ते थे।
मेडिकल फील्ड से बाद में,
पहले इंसानियत से तुम्हारे रिश्ते थे !!

खुद के लंग्स में न्युमोनिया लेकर,
लाखों लंग्स को मजबूत किया।
जाते-जाते कुछ कर जाऊं,
पल-पल यही संकल्प किया !!

तुम्हारे फर्ज की इंतिहा ने,
मानवता का पैगाम दिया।
तुम्हारी इंसानियत की इन्तिहा ने,
मेरी आत्मा को झकझोर दिया !!

तुम अमर हो गए डॉ अग्रवाल,
कुछ ऐसा फर्ज निभा कर अपना।
सच्चे मायने से तुमने,
जीवन सार्थक किया अपना !!

ऐसे मोती बहुत कम मिलते हैं,
जहां-ए-सागर  में ।
पर जब मिलते हैं तो खूब,
चमकते हैं हर दिल-ए-घर में !!

कहने को तो कलयुग है यह,
पर देवता अभी भी जिन्दा हैं।
शायद इसीलिए दुनिया में,
अभी तक, मानवता जिन्दा है !!

यह कविता ए डॉ अग्रवाल को श्रद्धांजलि के साथ साथ उस हर इन्सानियत से भरे डॉक्टर, स्वास्थय कर्मचारी और आम इंसान के लिए सैल्यूट है, जो नि:स्वार्थ भाव से आज मानव सेवा कर रहा है।

डॉ अग्रवाल पर एक शेर

गुल मुर्झा गए तो क्या, खुशबू इनमे भी होती है,
रात अमावस भी हो तो, दीवाली जगमग होती है।

डॉ अग्रवाल की जिन्दगी भले ही अमावस हो गई, पर वह लाखों
की जिन्दगी जगमग कर गए।

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