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Faridabad NCR

49 वर्षीय लीवर सिरोसिस मरीज़ को बार-बार पेट में फ्लूइड जमा होने की समस्या से राहत

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : यथार्थ अस्पताल, फरीदाबाद में एक 49 वर्षीय पुरुष मरीज़ को गंभीर लीवर सिरोसिस और पेट में लगातार एसाइटिक फ्लूइड जमा होने की समस्या से राहत दिलाने के लिए टीआईपीएस (ट्रांसजुग्युलर इन्ट्राहेपैटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंट) नामक एक विशेष मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की गई। यह मामला गंभीर पोर्टल हाइपरटेंशन के मरीज़ों में समय पर करे गये इलाज केके महत्व को दर्शाता है।

मरीज़, श्री डी.एम., लंबे समय से एडवांस्ड सिरोसिस और पोर्टल हाइपरटेंशन से जूझ रहे थे, जिसके कारण उनके पेट में बार-बार एसाइटिक फ्लूइड जमा हो रहा था। केवल दो से तीन हफ्तों में उन्हें कई बार अस्पताल आना पड़ा और करीब 20 लीटर फ्लूइड पेट से सुई के माध्यम से निकाला गया। इन बार-बार की जाने वाली प्रक्रियाओं के बावजूद फ्लूइड तेजी से दोबारा भर जाता था, जिससे पेट में भारीपन, चलने-फिरने में परेशानी, पोषण संबंधी कठिनाइयाँ और लगातार अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत पड़ती थी।

मल्टीडिसिप्लिनरी टीम द्वारा की गई मूल्यांकन में यह निष्कर्ष निकला कि बार-बार फ्लूइड निकालना स्थायी समाधान नहीं है, और टीआईपीएस प्रक्रिया इस स्थिति में स्थायी राहत का बेहतर विकल्प हो सकता है। यह प्रक्रिया डॉ. अभिनव बंसल (कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी) और डॉ. ध्रुव कांत मिश्रा (कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी) द्वारा मिलकर की गई। कैथ लैब में गर्दन की नस से कैथेटर के ज़रिए लीवर के अंदर पोर्टल और हेपैटिक वेन्स के बीच एक नया चैनल बनाया गया जिससे खून का दबाव कम किया जा सके।

डॉ. ध्रुव कांत मिश्रा, जो यथार्थ हॉस्पिटल, फरीदाबाद में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के कंसल्टेंट हैं उन्होंने बताया, “पोर्टल हाइपरटेंशन का असर धीरे-धीरे गंभीर परिणामों में बदल सकता है। टीआईपीएस हर मरीज़ के लिए नहीं होता, लेकिन चयनित मामलों में यह मरीज़ की जीवनशैली और अस्पताल पर निर्भरता दोनों में सुधार ला सकता है। डायबिटीज़, मोटापा या शराब सेवन जैसे जोखिम वाले व्यक्तियों को साल में एक बार एल.एफ.टी., फाइब्रोस्कैन और एच.बी.ए1सी जैसे परीक्षण अवश्य करवा लेने चाहिए ताकि लीवर डैमेज की समय रहते पहचान की जा सके।”

प्रक्रिया के 24 घंटे के भीतर ही मरीज़ की हालत में स्पष्ट सुधार देखने को मिला। एसाइटिक फ्लूइड का जमाव बंद हो गया और पेट की सूजन भी कम हो गई। अगले ही दिन मरीज़ को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और तब से उन्हें दोबारा फ्लूइड निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

टीआईपीएस का उपयोग आज उन मरीज़ों में भी किया जा रहा है जो लीवर ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त नहीं हैं। यह मामला दर्शाता है कि सिरोसिस की परेशानी को समय पर पहचान कर और सही मेडिकल विकल्प अपनाकर मरीज़ों के जीवन की गुणवत्ता को काफी हद तक बेहतर बनाया जा सकता है।

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