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Faridabad NCR

सामाजिक संस्थाओं द्वारा नुक्कड़ नाटकों का आयोजन किया

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : आधुनिक भारत के निर्माता,समता व न्याय के प्रणेता, संविधान शिल्पी भारत रत्न बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की पुण्यतिथि पर सामाजिक समरसता पर नुक्कड़ नाटकों का आयोजन किया गया। नुक्कड़ नाटक का आयोजन संभार्य फाउंडेशन, सोनू नाव चेतना फाउंडेशन और जज्बा फाउंडेशन द्वारा किया गया। नाटक का आयोजन शहर के अलग अलग स्थानों पर किया गया जिसमें सराय सेक्टर-37, बाटा झुगी, गौछी, सेक्टर23 अदि शामिल हैं।
इस अवसर पर सोनू नव चेतना फाउंडेशन से दुर्गेश शर्मा ने लोगों को सम्भोदित करते हुए बताया की भारतीय संस्कृति की आत्मा समरसता परिपूर्ण है धर्म सापेक्षीकरण, धर्म निरपेक्ष करण, सर्वधर्म समभाव, मानवतावाद, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, आदि अवधारणा सामाजिक समरसता की पोषक रही हैं विविधता में एकता का भाव समरसता का प्रतिनिधित्व करता है ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ यह भारतीय संस्कृति का अमर वाक्य व्यष्टि नहीं समष्टि के कल्याण, सुख -समृद्धि एवं हित की बात करता है और जहां एक नहीं अनेक मानवों बल्कि मानव ही नहीं, प्रत्येक प्राणी सजीव, निर्जीव सभी के हित की बात की जाए वही समरसता का उच्च आदर्श बनता है। मानव समाज में व्याप्त वाह्य आडंबर, कर्मकांड ,दैविक- दैहिक -भौतिक  पापों और तापों से मुक्ति का भाव भी इसी में समाहित है।
जज्बा फाउंडेशन अध्यक्ष हिमांशु भट्ट ने नाटक के माध्यम से लोगों को बतया की ‘मैं ‘ शब्द व्यक्तिवाद का प्रतीक है। जबकि ‘हम‘ शब्द में सामाजिक समरसता का आधार छिपा है समरस समाज में ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव, क्षेत्र, वर्ण -धर्म संप्रदाय की संकीर्णताएं व संघर्ष नहीं है। जब तक समाज में क्षेत्रीयतावाद, संप्रदायवाद, भाषावाद, अस्पृश्यतावाद का प्रहार होता रहेगा तब तक एकजुट समाज, विकसित समाज, उन्नत समाज, समतामूलक समाज की कल्पना व्यर्थ होगी।
कलाकार अभिषेक देशवाल संभार्य फाउंडेशन ने लोगों को नाटक के माध्यम से बतया वास्तव में यदि भारत को विश्वगुरु बनना है तो अपनी अंतिम ऊर्जा को जागृत कर सामाजिक जीवन को एकरस-समरस करना ही होगा, अन्यथा केवल आर्थिक और प्रौद्योगिकी आधार पर विकसित विचारधाराओं के बल पर मानव सुख की कल्पना बेमानी होगी। समस्त विकृतियों, विषमताओं, आक्रोश से मुक्त समरस समाज का मार्ग ही राष्ट्र कल्याण का मार्ग हो सकता है। समता का आविर्भाव समानता के बिना नहीं हो सकता ’समान शीलेषु व्यसनस्य सख्यम् ‘उक्ति प्रसिद्ध है फिर समानता लाने के लिए कुछ स्वार्थों का बलिदान भी करना पड़ता है।
इस अवसर पर नाटक में कलाकार हिमांशु भट्ट, अभिषेक देशवाल, आदित्य झा, गौरव ठाकुर, राहुल वर्मा, नर्वदा, शेफली, प्रवेश अदि का मुख्य रूप से योगदान रहा।
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