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हर किसी के लिए देखने लायक फिल्म है ‘ए होली कॉन्सपिरेसी’
New Delhi Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : कुछ फिल्में अपनी खास कहानी को लेकर निर्माण के दौर से चर्चा में आ जाती हैं और रिलीज होने से पहले ही फिल्म समारोहों में वाहवाही बटोर लेती हैं। ऐसी ही फिल्म है ‘ए होली कॉन्सपिरेसी’, जिसे विभिन्न प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में व्यापक प्रशंसा हासिल हो रही है। प्रसिद्ध अमेरिकी नाटक ‘इनहेरिट द विंड’ के आधार पर बनी ‘ए होली कॉन्सपिरेसी’ का निर्देशन साइबल मित्रा ने किया है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ‘ए होली कॉन्सपिरेसी’ हर आयु वर्ग के दर्शकों के देखने योग्य फिल्म है।
‘ए होली कॉन्सपिरेसी’ में दिखाया गया है कि विज्ञान के एक शिक्षक को इसलिए गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया गया, क्योंकि उसने छोटे शहर के स्कूल में विज्ञान पढ़ाते वक्त धर्म की भूमिका का उल्लेख नहीं किया। अदालत में चलने वाले मुकदमे के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी में नसीरुद्दीन शाह और सौमित्र चटर्जी वकीलों की भूमिका में हैं। यह फिल्म इस बहस के इर्द-गिर्द है कि क्या महत्वपूर्ण है- धर्म या विज्ञान? यानी, यह फिल्म एक परीक्षण भी है जो विज्ञान बनाम धर्म के महत्व और आवश्यकता पर सवाल उठाता है।
‘ए होली कॉन्सपिरेसी’ अपने तर्क के साथ घर पर आता है – नागरिकों के धार्मिक विश्वास में भिन्नता का संवैधानिक अधिकार उतना ही है, जितना एक धर्म के प्रति विशेष विश्वास करते हुए उसकी इसकी रक्षा करना। फिल्म मानवता पर संवादों के बजाय तर्क का उपयोग करती है और यह बताती है कि हर कोई समान पैदा होता है। यह फिल्म धर्म की राजनीति के बारे में बात करती है क्योंकि पता चल जाता है कि एक स्थानीय राजनेता बाबू सोरेन धर्म को राजनीति से जोड़कर अपना मतलब और मकसद साधना चाहता है।