Faridabad NCR
जे.सी. बोस विश्वविद्यालय को ‘ट्रिपल प्वाइंट एंगल ड्रिल’ की खोज के लिए पेटेंट मिला
Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 20 जनवरी। जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद को ‘ट्रिपल प्वाइंट एंगल्ड ड्रिल’ के आविष्कार के लिए पेटेंट मिला है। ट्रिपल प्वाइंट एंगल्ड ड्रिल का उपयोग ड्रिलिंग मशीन को बेहतर बनाने में किया गया है। इस आविष्कार के पेटेंट में विश्वविद्यालय का सहयोगी संस्थान आईआईटी दिल्ली है। यह खोज विनिर्माण उद्योग से संबंधित है जिसके परिणामस्वरूप खोजकर्ताओं ने उत्पादकता में वृद्धि का दावा किया है।
विश्वविद्यालय को पेटेंट दिलाने में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर तिलक राज और डॉ. भास्कर नागर और वाईएमसीए इंजीनियरिंग संस्थान के पूर्व संकाय सदस्य प्रो. रविशंकर जोकि जो अब आईआईटी, दिल्ली के प्रबंधन अध्ययन विभाग में प्रोफेसर है, का योगदान रहा। विश्वविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आज कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने पेटेंट के लिए सभी खोजकर्ताओं को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर निदेशक (आर एंड डी) प्रो. नरेश चौहान, सभी डीन एवं विभागाध्यक्ष भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. तोमर ने कहा कि विश्वविद्यालय के नाम पर ऐसे पेटेंट प्राप्त होना जिसका सीधा संबंध एवं व्यवहारिकता विनिर्माण उद्योगों से जुड़ी है, गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र, खासकर विनिर्माण क्षेत्र जिसे देश के आर्थिक विकास की रीढ़ माना जाता है, अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थानों से ऐसे व्यावहारिक समाधानों की उम्मीद करता है। उन्होंने कहा कि किसी भी देश का विकास अनुसंधान पर निर्भर करता है, और जेसी बोस विश्वविद्यालय, जिसके पास औद्योगिक क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति का लाभ है, उद्योग को इस तरह का समाधान प्रदान करने की क्षमता रखता है। उन्होंने खोजकर्ताओं से आविष्कार के व्यावसायिक पहलुओं का पता लगाने के लिए कहा ताकि इससे विश्वविद्यालय को लाभ हो सके।
अपने अनुभव को साझा करते हुए प्रो. तिलक राज ने कहा कि इस खोज का विचार औद्योगिक संवाद से विकसित हुआ। इसकी प्रारंभिक अवधारणा और डिजाइन पूर्व वाईएमसीए इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में मेरे पूर्व सहयोगी प्रोफेसर रविशंकर, जो अब आईआईटी दिल्ली में हैं, और मेरे स्कोलर डॉ भास्कर नागर के सहयोग से तैयार हुआ। इस खोज ने परीक्षण के दौरान काफी आशाजनक परिणाम दिए और उत्पादकता में 20 प्रतिशत तक का सुधार देखने का मिला। हालाकि उनकी यह खोज 1990 के दशक के अंत में हुई तथा व्यावहारिक रूप से लागू करने तथा पेटेंट का दावा करने में 8 साल से अधिक का समय लग गया।
डॉ. भास्कर नागर ने कहा कि एक युवा शोधकर्ता होने के नाते वह इस पेटेंट से अत्यधिक प्रेरित हैं और सतत विकास में योगदान देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और कृषि उपकरणों के क्षेत्र में काम करना चाहते है।
प्रो. रविशंकर ने कहा कि व्यावसायिक पहलू वाले इस पेटेंट को आसानी से हमारे नाम से फाइल किया जा सकता है लेकिन इसका श्रेय हमने अपने संस्थान को दिया। क्योंकि आज हमने जो कुछ भी हासिल किया है, उसमें इस संस्थान का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि सरकार को पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया और समय को कम करना चाहिए। इस पेटेंट को प्राप्त करने में 8 वर्ष से अधिक का समय लगा है। यदि यह पहले प्रदान किया गया होता, तो इसका उद्योग पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता जिससे विनिर्माण क्षेत्र को बड़े पैमाने पर मदद मिलती।