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दिल्ली मैराथन में फरीदाबाद के सुशांत गुप्ता एक मात्र दृष्टिहीन एथलीट खिलाड़ी ने लिया भाग, लोगों ने उनके होंसले को किया सलाम

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : विश्व पटल पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई दिव्यांग एथलीट हैं जिन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत में बदल दिया। रविवार को दिल्ली के  जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में अपोलो टायर दिल्ली मैराथन में देश के कई हिस्सों से खिलाड़ी भाग लेने पहुंचे थे ।
लेकिन सबसे ज्यादा सुर्ख़ियों में फरीदाबाद के सुशांत गुप्ता रहे जो की एक मात्र दृष्टिहीन दिव्यांग एथलीट थे। सुशांत गुप्ता को आँखों से बहुत ही कम दिखाई देता है। दिल्ली मैराथन में सुशांत गुप्ता ने बड़े ही उत्साह से भाग लिया और लोगो का ध्यान अपनी और आकर्षित किया हर कोई उनकी इस हिम्मत और जज्बे को सलाम कर रह था उन्होंने अभिशाप को वरदान में बदल दिया।
फरीदाबाद में  रहने वाले सुशांत गुप्ता ने बताया की वह भी अन्य युवाओं की तरह अपने जीवन में कुछ बनना चाहते थे। और यही कारण था की उन्होंने इंजीनियरिंग  ग्रेजुएशन के बाद अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाले थे। लेकिन  2005 में, उन्हें अपनी आँखों से देखने में प्रॉब्लम आने पर इलाज के दौरान  एक दुर्लभ आनुवंशिक समस्या का पता चला, जो बिगड़ने लगी थी।, जाँच में पता चला की  पिगमेंटोसा नामक दुर्लभ नेत्र रोग का रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (आरपी) एक दुर्लभ, वंशानुगत बीमारी है जिसमें आंख की रोशनी के प्रति संवेदनशील रेटिना धीरे-धीरे और क्रमशः बिगड़ता जाता है।  आरपी के कारण धीरेधीरे अंधापन हो जाता है। चिकित्सा विज्ञान में आज तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है।
सुशांत ने बताय की दृष्टिहीन की यह समस्या उनके  दैनिक गतिविधि में बाधा डालने लगी, धीरे-धीरे देखने में सक्षम नहीं होने की अक्षमता की ओर ले गई। जीवन के अधिकांश अवसरों के बंद होने का एहसास होने पर, उन्होंने अपना ध्यान अपने स्वास्थ्य को बदलने की ओर केंद्रित करना शुरू कर दिया और यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, वह अपने कुछ दोस्तों की मदद से,  सुबह की सैर के लिए निकलने लगे। उनके दोस्तों ने उन्हें  कुछ मीटर दौड़ने के लिए प्रेरित किया और फिर 2-5 किलोमीटर की छोटी दूरी, धीरे धीरे एथलीट उनके शौक और जनुनू में शुमार हो गया अंततः 42 किलोमीटर की दौड़ – 26 फरवरी रविवार को अपोलो नई दिल्ली मैराथन में भाग लिया । वह 40 साल की उम्र में इस मैराथन  में फरीदाबाद से एकमात्र दृष्टिबाधित प्रतिभागी थे। सुशांत गुप्ता ने बताया की दृष्टि खोने के बावजूद उन्होंने
अपनी  जीवन शैली और फिटनेस को बदला अक्षमता के बावजूद हिम्मत ना हारते हुए एथलीट को शौक और लक्ष्य बना लिया  सुशांत गुप्ता ने कहा की वह अपने जैसे डिसेबल्ड और दिव्यांग युवाओं से कहना चाहते है की  वह पूरी तरह से धैर्य और हिम्मत से जीवन में आगे बढ़े उन्होंने कहाकि लेकिन बात शारीरिक रूप से मानसिक मजबूती की है और दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कोई भी उनके जैसे  खिलाड़ी बनकर साबित  कर सकते  हैं कि जहां चाह वहां राह है। उन्होंने अभिशाप को वरदान में बदल दिया।
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