Faridabad NCR
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने मोतियाबिंद के जोखिम, मामलों तथा दृष्टि की सुरक्षा पर प्रकाश डालते हुए ‘मोतियाबिंद जागरूकता माह’ मनाया
Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : शनिवार, 29 जून। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने मोतियाबिंद के कारणों, समय पर इसका पता न लगने पर होने वाले जोखिमों और आँखों के स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए उपलब्ध एडवांस्ड उपचार समाधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर ‘मोतियाबिंद जागरूकता माह’ मनाया। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद में नेत्र रोग विभाग का नेतृत्व डॉ. निखिल सेठ, एचओडी –नेत्र रोग विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद कर रहे हैं।
मोतियाबिंद आँख के लेंस का धुंधलापन है, जिससे दृष्टि में कमी आती है। यह एक या दोनों आँखों को प्रभावित कर सकता है और आमतौर पर समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होता है। मोतियाबिंद खासकर वृद्ध लोगों में दृष्टि हानि का एक आम कारण है। उम्र बढ़ना, चोट लगना, आनुवंशिक कारक, जीवनशैली कारक जैसे धूम्रपान और उच्च रक्तचाप एवं मधुमेह जैसी चिकित्सा स्थितियाँ लोगों में मोतियाबिंद के प्रमुख कारण बनी हुई हैं।
मोतियाबिंद धुंधली दृष्टि, रात में देखने में कठिनाई, प्रकाश और चकाचौंध के प्रति संवेदनशीलता, कभी-कभी रंगों का फीका पड़ना या पीला पड़ना, रोशनी के चारों ओर एक गोलाकार दिखाई देना और चश्मे की क्षमता में बार-बार परिवर्तन आदि जैसे लक्षणों से जुड़ा हुआ है।
डॉक्टर आँखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कुछ रोकथाम उपाय करने की सलाह देते हैं। नियमित रूप से आँखों की जाँच, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य स्थितियों को नियंत्रित रखना, शराब का सेवन सीमित करना और धूम्रपान से बचना, आँखों को यूवी किरणों से बचाने के लिए धूप का चश्मा पहनना और फलों और सब्जियों से भरपूर स्वस्थ आहार खाने की सलाह दी जाती है।
मोतियाबिंद के उपचार में एडवांस्ड इंट्राऑकुलर लेंस, जैसे मोनोफोकल, ईडी, मल्टीफोकल या अकोमोडेटिंग लेंस शामिल हैं, जो मोतियाबिंद के साथ-साथ प्रेसबायोपिया (पास की नजर कमजोर होना) को भी ठीक कर सकते हैं और चश्मे की आवश्यकता को कम कर सकते हैं। लेजर-असिस्टेड तकनीक सर्जिकल प्रक्रिया में अधिक सटीकता प्रदान करती है। छोटे चीरे और बेहतर तकनीक से रिकवरी तेजी से होती है और नतीजे बेहतर होते हैं।
डॉ. निखिल सेठ, एचओडी- नेत्र रोग विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद कहते हैं, “हम आंखों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के महत्व को समझते हैं। हम मोतियाबिंद के बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं ताकि प्रभावित व्यक्तियों के लिए प्रारंभिक निदान, देखभाल उपलब्ध कराने और दृष्टि की गुणवत्ता में सुधार हो सके क्योंकि मोतियाबिंद वृद्ध लोगों में काफी आम है और युवा लोगों को भी प्रभावित कर रहा है। शुरुआती चरणों में इसे नए चश्मे, तेज रोशनी, एंटी-ग्लेयर सनग्लास या मैग्निफाइंग लेंस से नियंत्रित किया जा सकता है। जब मोतियाबिंद दैनिक गतिविधियों में रूकावट डालता है, तो अक्सर सर्जरी की सलाह दी जाती है। सबसे आम प्रक्रिया फेकोइमल्सीफिकेशन है, जिसमें क्लाउडी (धुंधली) लेंस को हटाकर आर्टिफिशियल (कृत्रिम) इंट्राऑकुलर लेंस (IOL) लगाया जाता है। मोतियाबिंद सर्जरी आम तौर पर सुरक्षित और प्रभावी होती है, जिससे अधिकांश रोगियों की दृष्टि और जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है।”
डॉ. सेठ कहते हैं, “हालांकि मोतियाबिंद को हटाने में कभी देर नहीं होती है, लेकिन मोतियाबिंद को पूरी तरह से विकसित होने से पहले हटा देना बेहतर होता है, क्योंकि इससे सर्जरी की अवधि और रिकवरी का समय कम हो जाता है। जल्दी हटाने का मतलब यह भी है कि आप बहुत विकसित (हाइपरमेच्योर) मोतियाबिंद से जुड़ी दृश्य हानि और इसकी जटिलताओं की बढ़ती संभावनाओं से बच सकते हैं।
भारतीयों को पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में लगभग दस साल पहले मोतियाबिंद हो जाता है, और भारत में मोतियाबिंद होने की औसत आयु 50 से 60 वर्ष के बीच है। भारत में हर साल लगभग 65 लाख मोतियाबिंद हटाने की सर्जरी की जाती है। डब्ल्यूएचओ/एनपीसीबी (नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस) सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में 22 मिलियन से अधिक अंधे लोगों (12 मिलियन अंधे लोगों) का बैकलॉग है, और इनमें से 80.1% मोतियाबिंद के कारण अंधे हैं। मोतियाबिंद अंधापन की वार्षिक घटना लगभग 3.8 मिलियन है।