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नवरात्रों के दूसरे दिन महारानी वैष्णो देवी मंदिर में माता ब्रह्मचारिणी की भव्य पूजा अर्चना की गई

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : नवरात्रों के दूसरे दिन महारानी वैष्णो देवी मंदिर में माता ब्रह्मचारिणी की भव्य पूजा अर्चना की गई, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने के लिए सुबह से ही मंदिर में भक्तों की लाइन लगती प्रारंभ हो गई. मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने प्रातः कालीन आरती एवं हवन यज्ञ का शुभारंभ करवाया. श्री भाटिया ने श्रद्धालुओं को नवरात्रों की शुभकामनाएं भी दी. इस शुभ अवसर पर उद्योगपति आरके जैन, केसी लखानी, बडकल विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी विजय प्रताप, उद्योगपति आर के बत्रा एवं भारत अरोरा ने माता के चरणों में माथा टेक कर अपनी अरदास लगाई, मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने आए हुए सभी गणमाने लोगों को माता की चुनरी एवं प्रसाद भेंट किया, कांग्रेस प्रत्याशी विजय प्रताप ने माता रानी से जीत का आशीर्वाद मांगा. श्री भाटिया ने इस अवसर पर कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता रानी के सामने अपनी अरदास लगाते हैं वह आवश् पूर्ण होती है. इस अवसर पर श्री भाटिया ने मां ब्रह्मचारनी का गुणगान करते हुए कहा कि दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। श्री भाटिया ने कहा की कथा के अनुसार कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती

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