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कलेजा देकर माँ ने बचाई अपने जिगर के टुकड़े की जान, लिवर ट्रांसप्लांट टीम ने बच्चे का सफल ब्लडलेस लिवर ट्रांसप्लांट किया  

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : 10 मई। माँ की ममता को साबित करने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है। जब बात बच्चे की जान पर आती है तो माँ अपने प्राणों की परवाह किए बगैर बड़ी से बड़ी समस्या से लड़ जाती है। हाल ही में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में एक ऐसा मामला आया जहाँ एक माँ ने गंभीर लिवर इन्फेक्शन से लड़ रहे अपने 14 वर्षीय बेटे को अपने लिवर का टुकड़ा दान कर नया जीवन दिया।

डॉ. पुनीत सिंगला, प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी-लिवर ट्रांसप्लांट एवं एचपीबी सर्जरी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने बताया कि किर्गिस्तान से हमारे पास 14 वर्षीय बेकज़ात रुस्लानोविच कुदैबेर्गेनोव नाम का लड़का आया। परिजन के अनुसार, उन्होंने अपने देश में शुरुआत में मरीज की पेट दर्द और पीलिया की जाँच कराई थी, जाँच में बच्चे के लिवर में खासकर लिवर के कीड़े इकाइनोकोकस का इन्फेक्शन का पता चला था और इन्फेक्शन काफी हद तक पूरे लिवर पर फैला हुआ था। उस समय पर बच्चे को कीड़े की दवा दी गई थी और कहा गया कि किर्गिस्तान में इस इन्फेक्शन का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। इस हिस्ट्री के साथ मरीज को हमारे पास लाया गया। शुरुआती जाँच में हमे पता चला कि वाकई बच्चे के लिवर में इकाइनोकोकस मल्टीलोकुलरिस नाम का खतरनाक पैरासिटिक इन्फेक्शन काफी हद तक फ़ैल गया था और पेट के अन्दर सबसे बड़ी नस में भी घुसा हुआ था। इस केस में सामान्य ऑपरेशन करके इन्फेक्शन वाले एरिया को नहीं निकाला जा सकता था इसलिए इस स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट एकमात्र विकल्प बचा था जिसमें संक्रमित लिवर और अन्य इन्फेक्टेड हिस्से को निकालना जरूरी होता है। परिजन को इस कंडीशन के बारे में अच्छे से समझाया गया। अपने कलेजे के टुकड़े की जान को खतरे में देख बच्चे की माँ लिवर देने के लिए आगे आईं। माँ मेडिकल तौर पर लिवर देने के लिए फिट थी। लिवर ट्रांसप्लांट से जुडी सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बच्चे का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। इस केस में एक भी यूनिट ब्लड चढाने की जरूरत नहीं पड़ी काफी। ऑपरेशन के बाद माँ और बेटा दोनों स्वस्थ हैं। स्वस्थ होने पर बच्चे को डिस्चार्ज कर दिया।

डॉ. पुनीत सिंगला ने कहा कि ऑपरेशन के दौरान पता चला कि लिवर का काफी सारा हिस्सा कीड़े के इन्फेक्शन की वजह से खराब हो गया था। कीड़े ने आसपास की नसों में भी नुकसान पहुँचाया था। इस कारण यह सर्जरी बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण रही। लिवर ट्रांसप्लांट टीम के गहन अनुभव की वजह से ऑपरेशन सफल रहा। पूरा खराब लिवर निकाल दिया। कीड़े के सारे अवशेष निकाल दिए और कीड़े द्वारा खाई गई पेट की मोटी नस के संक्रमित एक बड़े हिस्से को भी निकाल दिया और इसके स्थान पर एक आर्टिफिशियल नस लगा दी गई। इसे केवल रिप्लेसमेंट कहा जाता है जो काफी जटिल होता है। ऑपरेशन लगभग 12-13 घंटे का समय लगा। अगर इसका समय रहते इलाज न किया जाए तो ये कीड़ा पूरे लिवर को खाकर कुछ सालों में मरीज की जान भी ले सकता है।

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