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Faridabad NCR

आर्य समाज की 150वीं स्थापना दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी: दयानंद सरस्वती के वैदिक दर्शन पर गहन विमर्श

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : डीएवी शताब्दी महाविद्यालय, फरीदाबाद के संस्कृत विभाग द्वारा, IQAC और आर्य समाज इकाई के संयुक्त तत्वावधान में तथा ICSSR के अनुदानात्मक सहयोग और हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के ज्ञान साझीदार सहयोग से आर्य समाज की 150वीं स्थापना जयंती पर दो-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी “स्वामी दयानंद सरस्वती का वैदिक दर्शन” का भव्य आयोजन हुआ।
इस संगोष्ठी में भारत के 22 राज्यों और अमेरिका सहित विभिन्न देशों से विद्वान, शिक्षाविद, शोधार्थी और आर्यजन शामिल हुए। कुल 8 सत्रों में लगभग 120 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें दयानंद सरस्वती के वैदिक चिंतन, समाज सुधार, स्त्री शिक्षा, पर्यावरण संतुलन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सार्वभौमिक भाईचारे जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई।
प्रमुख वक्ताओं में डॉ. एस के सपोरी , प्रो. वीरेंद्र अलंकार (चंडीगढ़) प्रो. सुरेंद्र कुमार (रोहतक), डॉ एस के शर्मा, पद्मश्री डॉ सुकामा आचार्य ( रुड़की, रोहतक), डॉ सतीश प्रकाश (गयाना),श्री सत्यपाल आर्य, डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, डॉ. विश्रुत आर्य (एटलांटा,अमेरिका), डॉ. अमरजीत आर्य (न्यूयॉर्क,अमेरिका), प्रो.बलवीर आचार्य (रोहतक), डॉ सत्यप्रिय आर्य (जम्मू), प्रो. सुनीता सैनी ( रोहतक), डॉ प्रियंका आर्य (जम्मू), डॉ पुष्पेंद्र जोशी ( पटियाला), डॉ कुलदीप आर्य ( अमृतसर) तथा अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विद्वान सम्मिलित रहे। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ. अमित शर्मा की पुस्तक “शब्द संवाद” का भी विमोचन हुआ।
महाविद्यालय के कार्यकारी प्राचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार ने देशभर से पधारे प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा मात्र अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन के लिए भी सतत प्रेरणा का स्रोत है।मुख्य वक्ताओं ने दयानंद सरस्वती के सत्य, तर्क, शिक्षा और समाज सुधार के आदर्शों को आधुनिक जीवन के लिए प्रासंगिक बताया। विशेष रूप से यह संदेश उभरकर सामने आया कि ज्ञान तभी सार्थक है जब वह आचरण में उतरे और मानव कल्याण का माध्यम बने।
इस आयोजन ने सिद्ध किया कि दयानंद सरस्वती के वैदिक दर्शन की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी 19वीं शताब्दी में थी।डीएवी शताब्दी महाविद्यालय का यह प्रयास निश्चित ही आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा और महर्षि दयानंद के वैदिक दर्शन को और व्यापक स्तर पर स्थापित करेगा।
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