Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : विश्व अल्ज़ाइमर दिवस के अवसर पर यह ज़रूरी है कि अल्ज़ाइमर डिसीज़, जो डिमेंशिया का सबसे आम रूप है, उसके प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए। इस वर्ष की थीम “डिमेंशिया के बारे में पूछें” समय पर निदान, उपचार और देखभाल की अहमियत को रेखांकित करती है।
अल्ज़ाइमर डिसीज़ मुख्य रूप से बुजुर्गों को प्रभावित करता है, लेकिन हर भूलने की समस्या अल्ज़ाइमर का संकेत नहीं होती। भूलने की आदत जीवन के हर चरण में हो सकती है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ स्मृति क्षीण होना किसी गंभीर स्थिति का शुरुआती लक्षण हो सकता है। यह समझना ज़रूरी है कि बढ़ती उम्र में कमजोर होती कॉग्निटिव फंक्शन मेमोरी लॉस का कारण बन सकती है, जो आगे चलकर अल्ज़ाइमर से जुड़ सकती है। जोखिम को कम करने के लिए सक्रिय जीवनशैली अपनाना और मानसिक व शारीरिक रूप से सक्रिय बने रहना फायदेमंद है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अल्ज़ाइमर आज की सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बन चुका है। हर पाँच सेकंड में एक नया अल्ज़ाइमर केस दुनिया में दर्ज होता है। वर्तमान में विश्वभर में 4 करोड़ से अधिक लोग अल्ज़ाइमर से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 60% मरीज़ 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले दस वर्षों में यह संख्या बढ़कर 8 करोड़ तक पहुँच सकती है।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद के न्यूरोलॉजी विभाग के क्लीनिकल डायरेक्टर, डॉ. कुणाल बहरानी ने बताया, “अल्ज़ाइमर को लेकर एक बड़ी गलतफ़हमी यह है कि कभी-कभी भूलना इसका साफ़ लक्षण है। हकीकत में यह हमेशा गंभीर स्मृति समस्याओं या अल्ज़ाइमर जैसी स्थिति तक नहीं ले जाता। शुरुआती लक्षण कई बार अन्य स्थितियों जैसे स्यूडो-डिमेंशिया, माइल्ड कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट (MCI) या डिमेंशिया के अन्य रूपों की ओर भी संकेत कर सकते हैं। इसीलिए, विशेषकर 60 वर्ष से ऊपर के लोगों में स्मृति से जुड़ी समस्याओं को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।”
सभी स्मृति समस्याएं सीधे अल्ज़ाइमर से जुड़ी नहीं होतीं। थायरॉइड विकार, किडनी या लिवर की समस्या जैसी स्वास्थ्य स्थितियां स्मृति पर गहरा असर डाल सकती हैं। दवाओं के दुष्प्रभाव, विटामिन B12 की कमी, नशा, मस्तिष्क संक्रमण या दिमाग में ब्लड क्लॉट भी मेमोरी लॉस और डिमेंशिया का कारण बन सकते हैं। इन कारणों की पहचान और उपचार के लिए व्यापक निदान आवश्यक है।
डॉ. बहरानी ने आगे कहा, “अल्ज़ाइमर की रोकथाम और शुरुआती चरण में नियंत्रण ही सबसे अहम उपाय हैं। जिन लोगों में अल्ज़ाइमर या डिमेंशिया की पहचान हो चुकी है, उनके लिए उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर पर नियंत्रण ज़रूरी है क्योंकि ये स्ट्रोक को ट्रिगर कर सकते हैं। मस्तिष्क के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से अल्ज़ाइमर की प्रगति को धीमा किया जा सकता है। इसमें नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, मानसिक गतिविधियाँ, अच्छी नींद, तनाव प्रबंधन और सामाजिक जीवन में सक्रिय भागीदारी शामिल है।”
परिवार और देखभाल करने वालों की भूमिका अल्ज़ाइमर से प्रभावित लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वे मरीजों को उनकी दिनचर्या बनाए रखने, शारीरिक गतिविधि के लिए प्रेरित करने और सामाजिक जुड़ाव बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, मरीजों को समय, अपने परिवेश और आसपास हो रही गतिविधियों से जुड़े रहना भी आवश्यक है।
अल्ज़ाइमर का प्रभाव न केवल मरीज बल्कि उनके परिवार पर भी गहरा पड़ता है। इसलिए समय पर कार्रवाई, सही निदान और उचित देखभाल से अल्ज़ाइमर मरीज़ों के जीवन की गुणवत्ता में बड़ा सुधार लाया जा सकता है।