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Faridabad NCR

मातृ-पितृ भक्त बालक सर्वत्र पूज्य होता हैः डॉ. बांके बिहारी

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : नीलकंठ महादेव मंदिर सेक्टर-8 में हो रही श्री शिव महापुराण के 24वें दिन कथा व्यास डॉ. बांके बिहारी ने श्री कार्तिकेय और तारकासुर वध का वर्णन करते एवं जीवन में माता, पिता और गुरू की महत्ता को परिभाषित किया। कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि भगवान कार्तिकेय को मां पार्वति और भगवान शंकर के पुत्र के रूप में पूजे जाते हैं। उन्हें युद्ध, साहस और सुरक्षा का देवता भी कहा जाता है। उन्हें अक्सर एक युवा, सुंदर भगवान के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनके हाथ में भाला है और वे मोर पर सवार होते हैं। श्री कार्तिकेय का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान कार्तिकेय को छह सिरों का देवता भा कहा जाता है और यह उनकी जन्मकथा से जुड़ा हुआ प्रसंग है, कहा जाता है कि उनका जन्म छह कृत्तिकाओं द्वारा किया गया था और उन्होंने उन सभी से एक साथ स्तनपान किया था, जिसके कारण उनके छह सिर हुए। कुछ मान्यताओं के अनुसार, कार्तिकेय के छह सिर प्रकृति के छह तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, और आत्मा) का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें देवताओं का सेनापति भी माना जाता है। तारकासुर का वध करने के लिए जब सभी देवता लगभग हार मान चुके थे तब सभी देवी देवताओं ने श्री कार्तिकेय को अपना आशीर्वाद और बल प्रदान कर इतना सबल बना दिया कि श्री कार्तिकेय जी ने एक ही बार में महाबली तारकासुर को मार गिराया।
मां का सबल और संस्कारी होना ही राष्ट्र-निर्माण में सहायक
इसी प्रकार ही भगवान गणेश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि श्री गणेश जी को सबसे पहले इसीलिए पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता को ही सबसे ऊपर रखा, पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने के बजाए उन्होंने अपने माता-पित की परिक्रमा को ही श्रेष्ठ माना। यह एक ऐसा प्ररेक प्रसंग है जिसे आज की युवा पीढ़ी को आत्मसात करने की अतिआवश्कता है। चूंकि संस्कारहीनता के कारण ही आज के बुजुर्ग वृद-आश्रम में रहने को मजबूर हैं। संस्कारों पर बोलते हुए डॉ. बांके बिहारी ने कहा कि बच्चों के संस्कार पुष्ट तभी होंगे जब मातृ शक्ति संस्कारवान होगी, क्योंकि मां ही बच्चे की पहली गुरू होती है। मां और बच्चे संस्कारवान होंगे तभी राष्ट्र सबल होगा, तभी एक भारत-श्रेष्ठ भारत होगा।
भगवान शंकर के परिवार जैसा आपसी सामजस्य ही जीवन का आधार
भगवान शिव के परिवार का उदाहरण देते हुए कथाव्यास डॉ. बांके बिहारी ने कहा कि यद्यपि भगवान शिव के परिवार में विरोधाभाष भी बहुत है लेकिन भगवान शिव के परिवार जैसा आपसी प्रेम कहीं और देखने को नहीं मिलता। क्योंकि भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल) है और मां पार्वती का वाहन सिंह (शेर) है। बैल और शेर का बैर है। ऐसे ही गणेश जी का वाहन मूषक(चूहा) है और भगवान शिव के गले में सर्प (सांप) विद्यमान है। चूहे और सांप का बैर है। इसी प्रकार श्री कार्तिकेय जी का वाहन मोर है, सांप और मोर का बैर है।
व्यासपीठ ही समाज को मति और गति दे सकती हैः कुलसचिव ड़ॉ. कृष्णकांत
महर्षि दयानंद विश्वविद्याल, रोहतक से कथा का श्रवण करने आए “कुलसचिव” ड़ॉ. कृष्णकांत गुप्ता ने कहा व्यासपीठ ही समाज को मति और गति दे सकता है। आज के कलुषित वातावरण में भगवत नाम कीर्तन और कथा प्रसंग ही समाज की दिशा और दशा बदल सकते हैं। कथा व्यास ड़ॉ. बांके बिहारी के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि वह एक परम विद्वान, भाषा मर्मज्ञ, ज्योतिषी और शिक्षाविद् हैं। अपनी कथा के माध्यम से वह ना केवल भगवान की लीलाओं का वर्णन कर रहे अपितु वर्तमान को देखते हुए समाज को जोड़ने के प्ररेक उदाहरण देकर
भी बहुत ही नेक कार्य कर रहे हैं जो कि सराहनीय है।
इस अवसर पर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (रोहतक) के कुलसचिव डॉ. कृष्णकांत गुप्ता, राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता जगवीर राठी, भागवत भास्कर पं. राजकिशन रामायणी, अधिवक्ता एवं कवि सौरभ मुदगिल, नीलम शर्मा,  प्रधान सतीश मित्तल, संतोष गर्ग, श्याम सुंदर मंगला, राजेश गर्ग, प्रदीप आदि सैंकड़ों भक्तों ने परिवार सहित कथा श्रवण आनंद लिया। इस अवसर पर मुख्य यजमान महेन्द्र गर्ग रहे।
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