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डी.ए.वी शताब्दी महाविद्यालय, फरीदाबाद में हुआ ‘पराक्रम दिवस’ के उपलक्ष्य में एक संगोष्ठी का आयोजन 

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को भारत सरकार द्वारा पराक्रम दिवस घोषित किये जाने के उपलक्ष्य में  डी.ए.वी शताब्दी महाविद्यालय में इस विषय पर विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्देश्य  छात्रों को नेताजी के जीवन के अहम पहलुओं व् देश के लिए सर्वस्व समर्पण की भावना से अवगत कराना रहा। सुश्री अरुंधती कावड़कर, प्रिंसिपल, सैनिक स्कूल चंद्रपुर, नागपुर मुख्य वक्ता के रूप में जुड़ीं।
मुख्य वक्ता अरुंधती कावड़कर ने कहा कि ऐसे अनेकों लोग हुए जिन्होंने स्वतंत्रता पाने और उसको अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया, उन्हीं में से एक व्यक्ति थे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिन्हें भारतीय योगी भी कहा जाता है क्योंकि एक सन्यासी जैसा उनका जीवन था। बचपन से ही उनकी वृति कुछ पाने की नहीं थी, वो तो हमेशा कुछ देना चाहते थे। उनके जीवन पर बंकिमचंद्र चटोपाध्याय जी के आनंदमठ साहित्य, स्वामी विवेकानंद व् रामकृष्ण परमहंस जी का प्रभाव रहा। सच्चे गुरु द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए वन-वन भटके।
उन्होंने इस बात को सोचा कि हमारा भारत गुलाम कैसे है और फिर उस कारण के मूल तक जाकर, कैसे गुलामी से मुक्त हुआ जा सकता है। वो इस बात को समझ गए थे कि बंगाल के विभाजन का कारण अंग्रेजों की डिवाइड एंड रूल पॉलिसी का हिस्सा है कि इस देश के लोगों को धर्म व् सम्प्रदाय के आधार पर अलग-अलग कर दो जिससे 1857 के विद्रोह जैसे हालत फिर से पैदा न हों। 1905 के बंग भंग के बाद वंदे मातरम स्वतंत्रता समर का मंत्र बना और लोगों को ये अहसास हुआ की ये भारतवर्ष मेरी माँ है और माँ के टुकड़े नहीं हुआ करते। आई.सी.एस की परीक्षा पास की और इंग्लैंड में रहकर अन्य देशों की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किये गए संघर्ष व् उनकी स्वतंत्रता प्राप्ति का गहन अध्ययन किया। देश सेवा करने के लिए वापस आकर चितरंजनदास के साथ काम किया व् गाँधी जी के संपर्क में आये। पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर कांग्रेस के अध्यक्ष बने किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति लिए हिंसा को लेकर गाँधी जी मतभेदों के चलते कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। स्वराज और फॉरवर्ड समाचार पत्रों का संपादन किया। 1941 में वीर सावरकर से भेंट की और सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई। जनआंदोलन में नेताजी जितने प्रभावी थे उतने ही प्रभावी वो सशस्त्र क्रांति में भी थे। उनके पराक्रम को हमें इस बात से समझना होगा प्रेजिडेंसी कॉलेज से निकाले जाने के बाद बी.ए व् आई.सी.एस की परीक्षा इतनी अच्छी रैंक से पास करना उनके बौद्धिक पराक्रम को, जनआंदोलन के लिए नौकरी को छोड़ देना, कांग्रेस का अध्यक्ष पद पाना और विचारों की लड़ाई के लिए छोड़ देना उनके राजनैतिक पराक्रम को, स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी खुद की सेना यानि आजाद हिन्द फ़ौज का गठन करना या फिर अन्य देशों के हिटलर जैसे नायकों से मिलकर उनको अपने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लक्ष्य में सहयोग के लिए राजी करना उनके नेतृत्व पराक्रम को दर्शाता है। ये पराक्रम दिवस नेता जी सुभाष चंद्र जी के माध्यम से उन सभी क्रांतिकारियों के पराक्रम को भी याद करने का दिन है, जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।
महाविद्यालय प्राचार्या डॉ. सविता भगत ने कहा कि देश की लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले महान व्यक्तियों और सेनानियों को न केवल याद करना चाहिए बल्कि आने वाली पीढ़ी को उनके त्याग और बलिदान से शिक्षा भी लेनी चाहिए इस तरह के कार्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को इस बात से परिचित करना है कि हम जिस आजाद भारत में आज अधिकारों के साथ रह रहे हैं, जिस आजादी का आज हम आनंद ले रहे हैं, ये आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली। इस आजादी को पाने के लिए लोगों ने अपना खून बहाया और अपना सर्वस्व न्योछावर करके जीवन की आहूति दे दी। आज के युवाओं को ये समझाना जरूरी है कि जितना इस आजादी को पाना कठिन था,उतना ही कठिन इसे बनाये रखना भी है और इसको बनाये रखने के लिए हमें कुछ न कुछ त्याग करने पड़ते हैं, जिन्हे हम अपने दैनिक जीवन में करने को तैयार नहीं होते। नेता जी ने कहा कि आसानी से कोई चीज नहीं मिल सकती और हमारे लिए एक ही इच्छा होनी चाहिए और वो है देश के लिए मरने की इच्छा, जिससे भारत जी सके यानि शहीदों के खून से स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो सके। हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मूल्य अपने खून से चुकायें। मैंने जो कष्ट देखे हैं, भारतियों की जो दुर्दशा देखी है उससे मेरे अंदर इससे आजादी पाने के लिए ताकत आ रही है। हम पराक्रम दिवस मना रहे हैं और डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय द्वारा चलए जा रहे कार्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को क्रांतिकारियों के उन विचारों से अवगत करना है जो उन्हें देश के लिए त्याग, बलिदान और कुर्बान होने के लिए उन्हें प्रेरित कर रहा था। भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से संगोष्ठी में शामिल मैडम जगदम्बे जी ने भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा भारतीयता को शिक्षा में शामिल करने के कार्यों पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी संयोजिका कमलेश सैनी ने कहा कि “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”जैसे ही ये पंक्तियाँ हमारे कानों को सुनाई देती हैं तो हमारे मानस पटल पर एक तस्वीर उभरती है, और वह तस्वीर है परम सेनानी, सच्चे ज्ञानी और भारत माता के सुपुत्र नेता जी सुभाष चंद्र बोस की। भारत सरकार द्वारा इंडिया गेट पर नेता जी की एक प्रतिमा की भी स्थापना की जाएगी। हमारा महाविद्यालय भी ऐसे महान शख्सियत को स्मरण करते हुए पराक्रम दिवस को मना रहा है। उन्होंने भारत माता के वीर सपूत को शत शत नमन किया। अंत में उन्होंने मुख्य वक्ता और सभी श्रोताओं का संगोष्ठी में शामिल होने पर धन्यवाद किया।
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