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Faridabad NCR

अमृता अस्पताल ने पार्किंसन संबंधी बीमारी को लेकर सपोर्ट ग्रुप के गठन का किया ऐलान

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : 18 अप्रैल। फ़रीदाबाद स्थित डिपार्टमेंट ऑफ़ न्यूरोलॉजी ऐंड स्ट्रोक मेडिसिन ने विश्व पार्किंसन्स दिवस के उपलक्ष्य पर मरीज़ों को जागरुक बनाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम में पार्किंसन व ऐसी ही अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीज़ों व उनके परिवारों की सहायता करने के उद्देश्य से पार्किंसन‌ सपोर्ट ग्रुप की स्थापना का ऐलान‌ किया गया। इस ग्रुप के ज़रिए अनुभवों व ज्ञान की बातों को साझा करने के लिए ठोस मंच उपलब्ध कराया जाएगा और मरीज़ों को भावनात्मक सहारा देकर उन्हें अपनी बीमारी का बेहतर ढंग से प्रबंधन करने का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा और उनके जीवन को गुणात्मक रूप से बेहतर बनाने के अथक प्रयास किये जाएंगे।

पार्किंसन बीमारी एक न्यूरोलॉजिकल अवस्था है जो शरीर‌ के मोटर प्रणाली पर सीधा हमला करता है जिससे मरीज़ के शरी‌र में कंपकंपी का एहसास होता है, एक किस्म की जड़ता महसूस होती है और ऐसे में मरीज़ को शारीरिक तौर पर हलचल करने में कमज़ोरी का एहसास होता है। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा न्यूरोडिजेनेरेटिव विकार है और अगर जल्द और सही तरीके से उपचार ना किया जाए तो यह सह-रुग्णता का प्रमुख कारण बनता है। पार्किंसन के लक्षणों में ब्रैडीकीनिशिया (शारीरिक रूप से शिथिलता महसूस करना), शरीर में ऐंठन आना, आराम की मुद्रा में हाथ अथवा उंगलियों का कांपना जैसे लक्षण पाये जाते हैं. शुरुआती दौर में यह लक्षण काफ़ी मामूली किस्म के होते हैं और इससे कुछ मरीज़ों द्वारा हाथों व पैरों में कंपन महसूस किया जाता है जबकि बाक़ी‌ मरीज़ किसी ख़ास तरह का कंपन महसूस किये बग़ैर शारीरिक रूप से शिथिल महसूस कर सकते हैं।

पार्किंसन संबंधी बीमारी के दौरान अक्सर नॉन-मोटर लक्षण – बेचैनी, अवसाद, कब्ज़ और तरह-तरह से होनी वाली पीड़ा का अनुभव किया जाता है। ऐसे में बीमारी के शुरुआती दौर में मरीज़ आमतौर पर कंधे व पीठ के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव करता है। ऐसे में यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि शुरुआती दौर में ही पार्किंसन संबंधी बीमारी के लक्षणों का पता लगा लिया जाए ताकि ऐसे मरीज़ों का बेहतर ढंग से इलाज संभव हो सके।

फ़रीदाबाद स्थित अमृता अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर संजय पांडे कहते हैं, “हम कम्युनिटी को पार्किंसन सपोर्ट ग्रुप के ज़रिए मदद पहुंचाने को लेकर बेहद उत्साहित हैं। हम पार्किंसन के मरीज़ों और उनके परिवारों से जुड़ी चुनौतियों से पूरी तरह से अवगत हैं और ऐसे में हम उनकी पूरी तरह से सहायता करने,‌उन्हें तमाम तरह की सेवाएं उपलब्ध कराने और गुणात्मक रूप से उनके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मरीज़ों में  न्यूरोलॉजिकल बीमारी की गंभीरता से निपटने को लेकर यह समूह बहुमूल्य रूप से सहायता प्रदान करेगा। यह समूह उनके साथ नियमित रूप से बैठक करेगा, उन्हें शिक्षा से जुड़े संसाधन मुहैया कराएगा और उनका इलाज उच्च दर्जे के मेडिकल प्रोफेशनल के माध्यम से कराने की भी व्यवस्था करेगा। उल्लेखनीय है कि सामाजिक रूप से संवाद साधने के लिए भी यह ग्रुप काफ़ी कारगर सिद्ध होगा जो मरीज़ों और उनके परिवार के लिए बेहद ज़रूरी होता है।”

डॉक्टर संजय आगे कहते हैं, “पार्किंसन से ग्रसित मरीज़ों की संख्या को लेकर देशभर में रजिस्ट्री की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन एक अध्ययन से पता चलता है कि प्रति 1,00,000 लोगों में से 70-100 लोग पार्किंसन का शिकार हो रहे हैं। अक्सर ऐसा होता है कि इस बीमारी की या तो ठीक से जांच नहीं की जाती या फिर इसका ग़लत तरीके से इलाज किया जाता है, ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में यह होता है। यही वजह है कि भारत में पार्किंसन से पीड़ित लोगों की संख्या अनुमान से ज़्यादा भी हो सकती है। ऐसे में सपोर्ट ग्रुप का गठन बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि समय-समय पर मरीज़ों को ऐसी सेवाओं की ज़रूरत पड़ती रहती है जिससे ठीक तरह से उनका इलाज चलता रहे और उनकी आत्मनिर्भरता यूं ही बरकरार रहे।

इसमें न्यूरोलॉजिस्ट अथवा मूवमेंट डिस्ऑर्डर स्पेशलिस्ट से इलाज कराना, शरीर में हलचल बढ़ाने के लिए शारीरिक थेरेपी दिया जाना, संतुलन कायम करने में मदद करना व संपूर्ण रूप से सशक्त बनाना, आसानी से रोज़मर्रा के कामों को अंजाम देने संबंधी गुर सिखाना, स्पष्ट रूप‌ से बोल पाकी शक्ति को बनाए रखने के लिए स्पीच थेरेपी देना शामिल है। अवसाद व तनाव का अनुभव कर रहे और अन्य भावनात्मक चुनौतियां झेल रहे मरीज़ों को भावनात्मक रूप से सहारा दिया जाना भी एक कारगर उपाय है।

उम्र के बढ़ने के साथ-साथ और जीने की बढ़ती संभावना के बीच पार्किंसन रोग भारत के लिए तेज़ी से बढ़ता हुआ चिंता का विषय है। उल्लेखनीय है कि पारंपरिक तौर पर इसे बुजुर्गों को होने वाली बीमारी के तौर पर देखा जाता रहा है, मगर अब ढेरों युवाओं में भी इस रोग के लक्षण देखे जा रहे हैं। पार्किंसन को अवसाद, तनाव व बैचेनी और संज्ञानात्मक बधिरता के साथ जोड़कर देखा जाता है. भारत में पार्किंसन‌ के मरीज़ों में सह-रुग्णता के ढेरों मामले पाये जाते हैं जिनकी प्रमुख वजहों में उच्च स्तर का तनाव, खान-पान पर ध्यान ना देना और शारीरिक रूप से कसरत नहीं करना शामिल है।

एक विशेष तथ्य पर रौशनी डालते हुए डॉ. संजय पांडे कहते हैं, “अक्सर देखा गया है कि भारत में पार्किंसन‌ के शिकार मरीज़ों और उनके परिवारों पर एक अतिरिक्‍त किस्म का बोझ होता है। भारत में अक्सर परिवार के सदस्यों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने करीबियों की देखभाल करें, फिर भले ही उनकी आर्थिक व सामाजिक हालत खस्ता ही क्यों ना हो. ऐसे में ज़रूरत इस‌ बात की है कि सपोर्ट सेवाएं प्रदान कर मरीज़ों और उनकी देखभाल करनेवाले लोगों को राहत पहुंचाने के तमाम इंतज़ाम किये जाएं और अमृता अस्पताल ने इसी बात को ध्यान में रखकर एक अनूठी पहल की है।”

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