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Hindutan ab tak special

अनुपम खेर की अद्भूत भूमिका और लाजवाब अदाकारी ने “साँचा” को बना दिया देखने लायक सिनेमा

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Mumbai Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के आने की वजह से एक बात यह अच्छी हुई कि बहुत सारी फिल्में जो सिनेमाघर तक नहीं पहुंच पाई, उन्हें ओटीटी पर रिलीज किया गया। अनुपम खेर, रघुवीर यादव, मुकेश तिवारी, विजय राज, सुधा चंद्रन जैसे कलाकारों से सजी फ़िल्म साँचा एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई है जिसे दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।
फ़िल्म की कहानी काफी अलग है और इसका कंटेंट और ट्रीटमेंट ही इसे एक बेहतर सिनेमा बनाता है।
फ़िल्म सांचा आज के प्रगतिशील और सभ्य समाज में इंसान की भावनाओं के कड़वे सत्य को पेश करने का एक उम्दा प्रयास है। सांचा सिर्फ एक इंसान की कहानी नहीं है बल्कि यह एक विचार है जो हर उस इंसान से संबंधित है जो संकट से गुजरता है। हर माता-पिता ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उन्हें एक बुद्धिमान और सेहतमंद बच्चा हो और यदि यह लड़की हो तो खूबसूरत हो। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि भगवान की यह बहुत उदारता कुछ माता-पिता के लिए एक अभिशाप बन जाती है।
साँचा की कहानी एक गरीब महिला चंदा की है, जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक ईंट की भट्ठी में काम करती है। जैसे हर मां अपने बच्चे की हिफाजत करती है, चंदा भी इस दुनिया की वासनापूर्ण निगाहों से बेटी को बचाने के लिए अपनी बेटी की चमकती त्वचा पर हर दिन भट्ठी की राख लगा देती है। ताकि उसकी बेटी चकोरी गोरी या खूबसूरत नजर न आए और इस तरह वह दुनिया की हवस से बच जाए। चंदा अपने आत्म सम्मान के लिए सबसे मजबूत मां के रूप में खड़ी दिखाई देती है। दुर्भाग्यवश अपने पति की बीमारी के कारण वह ईंट भट्टी के ठेकेदार, शंभू (मुकेश तिवारी) से पैसा उधार लेती है, और अनजाने में उन मजबूर महिलाओं के बीच खुद को ले आती है जो जब भी चाहें उसके कर्ज के बदले में शारीरिक दुरुपयोग से गुजरती हैं। कहानी में मोड़ तब आता है जब एक दिन शंभू की आंखें चंदा की बेटी, चकोरी के आकर्षण को देखने के लिए चमकती हैं, जिसकी सुंदरता वर्षों से राख की परतों के नीचे छिपी हुई थी। इस भयानक स्थिति से निकलने और शम्भू के दुष्ट इरादे को महसूस करते हुए, चंदा ने अपनी बेटी के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक समाधान पाया। विजय राज चंदा को समझाता है कि चकोरी की शादी जल्दी से कर दो, उसके जानने वालों में एक लड़का है। जब विजय राज से चकोरी के पिता रघुबीर यादव लड़के की उम्र पूछते हैं तो वह बताता है कि 50- 55 वर्ष की उम्र होगी। इस पर चकोरी के मां बाप नाराज हो जाते हैं, मगर उस शम्भू के गंदे इरादे से बचाने के लिए एक अधेड़ व्यक्ति रामखिलावन (अनुपम खेर) से अपनी बेटी की शादी करवा देते हैं। चकोरी का पति, रामखिलावन अपने वैवाहिक जाल में एक कुंवारी लडकी को फंसाने के लिए बहुत खुश लगता है। लेकिन उसे एहसास होता है कि चकोरी उसे अपना पति नहीं बल्कि पिता जैसा मानती है तो वह अधेड़ आदमी एक अहम निर्णय लेता है। उसे यह एहसास हो जाता है कि उसने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ शादी करके बड़ी गलती की है, इसलिए वह अपनी साइकिल की दुकान पर काम करने वाले एक युवा लड़के से चकोरी की शादी करवा देता है। वह जाते जाते कहता है यह घर, ये दुकान और चकोरी अब तेरी जिम्मेदारी है।
देखा जाए तो अनुपम खेर इस फ़िल्म में हीरो के रूप में उभर कर सामने आते हैं। उन्होंने अपनी भूमिका और अपनी एक्टिंग से दिल जीत लिया है।
निर्देशक आलोकनाथ दीक्षित एक असरदार फ़िल्म बनाने में सफ़ल रहे है।
इस फ़िल्म के जरिये यह मैसेज देने का प्रयास भी किया गया है, कि किसी की गरीबी या मजबूरी का फायदा उठाकर बेटी की उम्र की लड़की से शादी करना कितना गलत है।
रघुबीर यादव ने चकोरी के पिता का रोल बखूबी प्ले किया है वहीं मुकेश तिवारी ने नकारात्मक रोल में बेहतर परफॉर्मेंस दी है।
फ़िल्म एमएक्स प्लेयर पर देखी जा सकती है। सामाजिक मुद्दे और समाज के कड़वे सच पर आधारित यह एक आंख खोलने वाला सिनेमा है।
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