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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : आज के समय में बच्चों का मोटापा भारत के शहरों और कस्बों में एक बड़ी लेकिन अनदेखी स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। जो चिंता पहले सिर्फ विदेश में मानी जाती थी, वह अब हमारे अपने घरों की हकीकत बन चुकी है। बच्चों का वज़न तेजी से बढ़ रहा है और इसका कारण है बदलती दिनचर्या, अनहेल्दी खाना और शारीरिक गतिविधियों की कमी।
भारत में फिलहाल करीब 8 से 10 प्रतिशत स्कूल जाने वाले बच्चे ओवरवेट माने जा रहे हैं। वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की मानें तो अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो 2030 तक देश में 2.7 करोड़ से ज़्यादा ओवरवेट बच्चे होंगे। यह आंकड़ा हमें समय रहते जागरूक होने का इशारा देता है।
डॉ. धन्सुख कुमावत, सीनियर कंसल्टेंट – पीडियाट्रिक्स एंड नियोनेटोलॉजी, यथार्थ हॉस्पिटल, फरीदाबाद बताते हैं, “बचपन का मोटापा सिर्फ वज़न की नहीं, भविष्य की सेहत की चेतावनी है। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यही मोटापा आगे चलकर डायबिटीज़, हार्ट की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर समस्याओं में बदल सकता है। ज़्यादातर माता-पिता इसे ‘बेबी फैट’ मानकर अनदेखा कर देते हैं, जबकि सच तो ये है कि हर साल उम्र बढ़ने के साथ ये स्थिति और बिगड़ती जाती है। समय पर डॉक्टर से सलाह लेना, बच्चों की डाइट और लाइफस्टाइल में छोटे-छोटे बदलाव करना, और एक्टिविटी को बढ़ावा देना ही इसका सही समाधान है।
पिछले कुछ सालों में भारतीय परिवारों की दिनचर्या काफी बदल गई है। माता-पिता के कामकाजी होने और तेज़ भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी के कारण बच्चों के खाने, खेलने और सोने का रूटीन बुरी तरह बिगड़ गया है। अब बच्चे घर का बना खाना कम और फास्ट फूड व पैकेट वाले स्नैक्स ज़्यादा खाते हैं। स्कूल, ट्यूशन और मोबाइल-टीवी के कारण बाहर खेलने का समय भी कम हो गया है। इस वजह से बच्चों में कैलोरी इनटेक ज़्यादा और बर्न कम हो रही है, जिससे वज़न बढ़ने लगता है। बच्चे अपने मम्मी-पापा की आदतें जल्दी अपनाते हैं, इसलिए अगर घर में ही एक्टिविटी की कमी और खाने-पीने की लापरवाही हो, तो बच्चों पर सीधा असर पड़ता है।
बचपन में मोटापा सिर्फ दिखने से जुड़ी समस्या नहीं है। इससे कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। ओवरवेट बच्चों को टाइप 2 डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, फैटी लिवर, और दिल की शुरुआती बीमारियों का खतरा रहता है। ज़्यादा वज़न के कारण जोड़ों में दर्द और हड्डियों की दिक्कतें भी सामने आने लगी हैं। लड़कियों में हार्मोनल गड़बड़ी के कारण जल्दी पीरियड शुरू होना या पीसीओएस जैसी समस्याएं देखी जा रही हैं। इसके अलावा मानसिक और सामाजिक असर भी गंभीर होता है। ऐसे बच्चों को अक्सर स्कूल में चिढ़ाया जाता है या बॉडी शेमिंग का शिकार होना पड़ता है, जिससे आत्मविश्वास घटता है और बच्चे डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं।
बचपन का मोटापा अगर समय रहते कंट्रोल न किया जाए, तो यह आगे भी बना रहता है और क्रॉनिक बीमारियों का कारण बनता है। अगर बच्चा तेज़ी से मोटा हो रहा हो, जल्दी थकता हो, खर्राटे लेता हो, या गले और गर्दन पर काले निशान दिखें, तो तुरंत एक पीडियाट्रिशियन से मिलना चाहिए।
बच्चों की सेहत के लिए स्कूल और डॉक्टर ज़रूर मदद करते हैं, लेकिन सबसे अहम भूमिका घर की होती है। अगर घर में नियमित और हेल्दी खाने की आदतें, स्क्रीन टाइम की सीमा, और शारीरिक एक्टिविटी को बढ़ावा मिले, तो बच्चों की सेहत अपने आप बेहतर हो सकती है।
आज की भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी में बच्चों की सेहत की ज़िम्मेदारी हमें और ज़्यादा समझदारी से निभानी होगी। थोड़े-थोड़े बदलाव और सही आदतें मिलकर बच्चों को मोटापे से बचा सकती हैं — और उन्हें एक बेहतर कल दे सकती हैं।