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ज्ञान पूर्वक कर्म ही भक्ति है : नरेन्द्र आहूजा ‘विवेक’

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 1 दिसंबर। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “ज्ञान, कर्म व भक्ति योग पर ऑनलाइन गोष्ठी गूगल मीट पर आयोजित की गई। यह परिषद का कॅरोना काल में 127 वा वेबनार था।
हरियाणा सरकार के राज्य ओषधि नियंत्रक नरेन्द्र आहूजा “विवेक” ने कहा कि गीता ज्ञान, कर्म भक्ति की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक और मनुष्य को जीवन जीने की शैली सिखाता है और निराशा को दूर करता है। उन्होंने कहा कि युद्ध भूमि में द्वन्द में फसा अर्जुन मोह, माया और ममता के कारण ही अपने कर्तव्य के निवर्हन में पीछे हट रहा था और श्री कृष्ण जी अर्जुन की शंकाओं व विषाद का निवारण करते हुए गीता का उपदेश दिया था। गीता के उपदेश को यजुर्वेद के 40 वें अध्याय के दूसरे मन्त्र का विस्तार बताते हुए विवेक ने कहा कि ज्ञान योग से हमें अपने और ईश्वर के सही स्वरूप और स्थिति एवं सही मार्ग का बोध होता है। कर्म योग से हम ज्ञान पूर्वक कर्म करते हुए उस वेद धर्म आर्य सिद्धान्तों के मार्ग पर चलकर अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। निष्काम भाव से किए गए परोपकार के यज्ञ कार्य ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं। देव दयानन्द ने सन्सार का उपकार करना ही मुख्य उद्देश्य बतलाया है। भक्ति योग में ईश्वर की प्रत्येक आज्ञा का यथावत पालन करते हुए हम ईश्वर की सच्ची भक्ति कर उसके आनन्द में निमग्न रहकर आनन्द प्राप्त कर सकते हैं।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि पुरुषार्थ ही जीवन में सब कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। व्यक्ति को निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए। व्यक्ति के कर्म वेद ज्ञान आधारित होने चाहिए और हम अपने कर्मों को लेखनी बनाकर ही अपना प्रारब्ध किस्मत या नियति लिखते हैं। हमें अपने किए प्रत्येक शुभ वा अशुभ कर्म का फल अवश्य मिलता है।

कार्यक्रम अध्यक्ष आर्य नेता मदनलाल तनेजा ने कहा कि वेद भी कर्मशील मनुष्य का गुणगान करते हैं।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद उत्तर प्रदेश के प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि गीता के तीसरे अध्याय में कर्मयोग का वर्णन मिलता है। गीता में कहा है कि मनुष्य में कर्म करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। एक क्षण भी मनुष्य कर्म किये बिना नहीं रह सकता। इसलिए मनुष्य निम्न कोटि के साधक के लिए कर्म योग को उपयुक्त बताया गया है।

योगाचार्य सौरभ गुप्ता ने कहा की गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ईश भक्ति करने वाले योगियों की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जो परमेश्वर के सगुण रूप में मन लगाकर, नित्य परमेश्वर की सगुण भक्ति में तत्पर परमश्रद्धा से ईश्वर की सगुण उपासना करते हैं, वे योगियों में श्रेष्ठ योगी हैं।
गायिका दीप्ति सपरा, प्रतिभा सपरा, रजनी गोयल, संध्या पांडेय, रविन्द्र गुप्ता, सविता आर्या, डॉ विवेक कोहली, नरेश खन्ना, संगीता आर्या गीत आदि ने मधुर गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
आचार्य महेन्द्र भाई, यशोवीर आर्य, ईश आर्य, आनन्द प्रकाश आर्य, राजश्री यादव, विचित्रा वीर, प्रतिभा सपरा, नरेन्द्र सोनी, यज्ञवीर चौहान, बिन्दु मदान, रजनी गोयल, जनक अरोड़ा आदि उपस्थित थे।

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