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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना जीवन देश की एकता  व अखण्डता के लिए बलिदान कर दिया : वीरकुमार यादव

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 08 जुलाई I पूर्व प्रदेश महामंत्री व भाजपा वरिष्ठ नेता वीरकुमार यादव ने आज भाजपा ज़िला फ़रीदाबाद और पलवल के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से वर्चूअल बैठक कीI भाजपा फ़रीदाबाद ज़िला अध्यक्ष गोपाल शर्मा, पलवल के ज़िला अध्यक्ष चरण सिंह तेवतिया, फ़रीदाबाद के ज़िला महामंत्री मूलचंद मित्तल, आर एन सिंह, पलवल के ज़िला महामंत्री वीरपाल दीक्षित मुख्य तौर पर उपस्थित रहेI इस वर्चुअल बैठक में मुख्यवक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए वीर कुमार यादव ने कहा कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक विद्वान, बुद्धिजीवी और महान देशभक्त थे।
‘’देशभक्त और राष्ट्रवादी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना जीवन समर्पित किया। हमारे प्रेरणा स्त्रोत व एक प्रखर राष्ट्रवादी विचारक श्रद्धेय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर हम उन्हें कोटि-कोटि नमन करते है। उन्होंने कहा कि
डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक अत्यन्त प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी बंगाली विषय में एम.ए. प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण किया और सन 1924 में क़ानून की भी पढ़ाई पूरी की।

वीरकुमार यादव ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे थे। जम्मू-कश्मीर में लगाए गए अनुच्छेद 370 के खिलाफ मुखर रूप से आवाज़ उठाने वाले लोगों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम सबसे पहले आता है। वे स्वतंत्र भारत की पहली कैबिनेट में मंत्री रहे थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर  के मसले पर अपना इस्तीफा दे दिया था।
जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान बनाने के विरुद्ध श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी आवाज उठाई थी, वो इस राज्य के लिए अलग संविधान बनाने के पक्ष में नहीं थे और इसी दौरान इन्होंने इस राज्य का दौरा भी किया था।
श्री यादव ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने विचारों को बिना किसी डर के प्रकट करते थे और इन्होंने हमेशा ही उन चीजों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी जो इनको देश की भलाई के विरुद्ध लगती थी। लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ही इन्होंने भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन किया था।
1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकले, जहां उन्हें गिरफ्तार किया गया था। 23 जून, 1953 में जेल में ही उनकी मौत हो गई थी। इनकी मृत्यु के बाद इनकी मां ने उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इनकी मौत की जांच करवाने को कहा था। लेकिन नेहरू जी ने इनकी मौत की जांच करवाने से मना कर दिया था. वहीं साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इनकी मौत को साजिश करार दिया था और कहा था कि इनकी हत्या हुई है।
वीरकुमार यादव ने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान से ही आज कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा हैं और हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी जी ने धारा 370 व 35A हटाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी हैं।

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