Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : दुनिया भर में पार्किंसंस डिजीज को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 11 अप्रैल को “विश्व पार्किंसंस दिवस” मनाया जाता है। इस बीमारी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद से ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. तरुण शर्मा ने कहा कि पार्किंसंस बीमारी मस्तिष्क से जुड़ा एक ऐसा विकार है, जिसकी वजह से मरीज का शरीर कई बार बेकाबू और आपे से बाहर हो जाता है। पार्किंसन बीमारी भारत में काफी आम है। हर साल करीब एक लाख नए मामले पार्किंसन बीमारी के देखने को मिलते हैं। आमतौर पर इस बीमारी के होने पर मरीज धीरे-धीरे चलने लगता है। उसकी चाल कम होने लगती है। चलने में परेशानी आने लगती है। छोटे-छोटे कदम चलने लगते हैं। कुछ मरीजों को शुरूआती दिनों में लिखने में परेशानी आने लगती है। वे अक्षर छोटे-छोटे लिखने लगते हैं। हाथ में कंपन शुरू हो जाती है जिसकी वजह से चीजों को पकड़ने में परेशानी आने लगती है। यह बीमारी पूरी तरह से जेनेटिक (आनुवंशिक) नहीं है। हालांकि 10 प्रतिशत ऐसे केस मिलते हैं जिनमें अनुवांशिक यानि किसी के परिवार में पार्किंसन रोग की हिस्ट्री पहले रह चुकी है।
शराब का अत्यधिक सेवन एवं धूम्रपान ज्यादा करना, खराब जीवनशैली, व्यायाम न करना, डायबिटीज, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना और एक से अधिक स्ट्रोक आना आदि इसके मुख्य कारण हैं। इसलिए आज यह बीमारी युवा लोगों में भी देखने को मिल रही है। इस तरह की बीमारी के शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है। अगर किसी परिवार में किसी सदस्य को पहले एक तरह की बीमारी की फैमिली हिस्ट्री है और बॉडी में जकड़न एवं हाथ-पैरों में कंपन महसूस हो रही है और शरीर में फुर्ती की कमी हो रही है तो यह पार्किंसन बीमारी के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं इसलिए तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरो सर्जन से संपर्क करें।
इस बीमारी का पता करने के लिए मरीज के ब्रेन का एमआरआई किया जाता है। आमतौर पर इस बीमारी के ब्रेन के अंदर कुछ ऐसे हिस्से होते हैं जिनमें सेल्स की कंसंट्रेशन कम होने लगती है। जिसकी वजह से ब्रेन सिग्नल (संकेत) कम पैदा करता है। इस कारण मरीज को चलने में तकलीफ होने लगती है, हाथों में कंपन होने लगती है। इस बीमारी के इलाज के लिए सबसे पहले मरीज को दवाइयां दी जाती हैं जो उस केमिकल को सप्लीमेंट करती हैं जिसकी ब्रेन के अंदर कमी हो जाती है। इस बीमारी में ब्रेन के सेल्स कम होने लगते हैं जिसके कारण मरीज को चलने में परेशानी, हाथों में कंपन होती है। अगर दवाओं के द्वारा मरीज को आराम नहीं मिलता है तो फिर कंप्यूटर गाइडेड न्यूरो नेविगेशन तकनीक की मदद से डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) सर्जरी की जाती है। सर्जरी द्वारा मरीज के दिमाग को कंट्रोल वाले हिस्से में इलेक्ट्रोड (चिप) लगा दिए जाते हैं और फिर इलेक्ट्रोड को छाती में एक बैटरी से कनेक्ट किया जाता है। ये बैटरी ब्रेन के इलेक्ट्रोड को करंट देती रहती है। ये बैटरी व्यक्ति की बॉडी एनर्जी से ही चार्ज होती रहती है। इस करंट के पैदा होने से कुछ सेल्स स्टीमुलेट होते हैं और ये हाथों की कंपन को रोकते हैं। यही कारण है कि सर्जरी के कुछ घंटों के बाद मरीज के शरीर में अकडन और कंपन की समस्या दूर हो जाती है जिसकी वजह से मरीज की चाल में भी सुधार हो जाता है।