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तंबाकू बीड़ी, सिगरेट या हुक्का के अत्यधिक सेवन से लंग्स (फेफड़ों) कई प्रकार से असर पड़ता है : डॉ. गुरमीत सिंह छाबरा
Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : तंबाकू के सेवन से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 31 मई को “विश्व तंबाकू निषेध दिवस” मनाया जाता है। इस संबंध में जानकारी देते हुए मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद से पल्मोनोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. गुरमीत सिंह छाबरा ने बताया कि तंबाकू का बीड़ी, सिगरेट या हुक्का के रूप में नियमित या अत्यधिक सेवन से लंग्स (फेफड़ों) कई प्रकार से असर पड़ता है। लंबे समय तक धूम्रपान करने के कारण सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) हो जाती है। यह धूम्रपान के कारण फेफड़ों में होने वाली सबसे आम बीमारी है। 50 साल की उम्र के बाद इसके मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। इस बीमारी को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। यह बहुत ही गंभीर बीमारी है। अगर एडवांस्ड सीओपीडी हो जाए तो मरीज ऑक्सीजन पर निर्भर हो जाता है, तब अक्सर लंग ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है।
तंबाकू का स्मोकिंग के रूप में अत्यधिक सेवन से लंग (फेफड़े) कैंसर का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। दुनिया में कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु का लंग कैंसर एक बड़ा कारण है। धूम्रपान करने के कारण महिलाएं भी लंग कैंसर का शिकार हो रही हैं। कम उम्र में स्मोकिंग करने के कारण लंग कैंसर की समस्या अब युवा लोगों में भी देखने को मिल रही है।
जिन मरीजों को ब्रोन्कियल अस्थमा होता है, सीधे तौर पर धूम्रपान करने या अन्य व्यक्ति द्वारा किये जा रहे धूम्रपान के संपर्क में आने पर उनमें ब्रोन्कियल अस्थमा के अटैक का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है। उनमें अस्थमा अटैक के बार-बार होने और ज्यादा गंभीर होने की आशंका बढ़ जाती है। अस्थमा बुजुर्ग और जवान दोनों में हो सकता है।
कुछ लोगों के फेफड़ों में हवा से भरे हुए गुब्बारे होते हैं लेकिन जब ये लोग तंबाकू का स्मोकिंग के रूप में अत्यधिक सेवन करते हैं तो फेफड़ों में मौजूद हवा के गुब्बारे (बुल्ले) फट जाते हैं। इस कारण फेफड़ों के आसपास हवा इकट्ठी हो जाती है जिससे फेफड़ा पिचक जाता है। इस स्थिति को न्यूमोथोरैक्स कहते हैं। यह एक इमरजेंसी स्थिति होती है। अगर ये बुल्ला फट जाए और फेफड़ें से हवा नियमित रूप से निकलती रहे तो टेंशन न्यूमोथोरैक्स का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति बहुत ही घातक होती है। इसमें मरीज का साँस फूलने लगता है और ऑक्सीजन का स्तर भी कम होने लगता है। सही समय पर ठीक उपचार ने मिलने पर टेंशन न्यूमोथोरैक्स के कारण कई बार मरीज की जान भी जा सकती है। फेफड़ों में मौजूद बुल्ले फटने की समस्या युवा लोगों में खासकर लंबी हाइट वाले युवाओं में ज्यादा मिलती है। बुल्ला के उपचार के लिए मरीज की छाती का मल्टी स्लाइस कंट्रास्ट सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट तथा फेफड़े का वेंटीलेशन स्कैन आदि जांचें की जाती हैं। सर्जरी कर फेफड़े के गुब्बारेनुमा हिस्से को निकाल दिया जाता है। इस सर्जरी को बुलेक्टॉमी कहते हैं। इससे फेफड़े की कार्यक्षमता फिर से पहले जैसी हो सकती है।
लंबे समय तक स्मोकिंग करने के कारण क्रोनिक ब्रोंकाइटिस नामक बीमारी हो जाती है जिसमें सांस की नलियों में सूजन हो जाती है, ज्यादा बलगम बनता है, बार-बार खांसी आती है। यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति में हो सकती है।
सलाह:
· तंबाकू का बीड़ी, सिगरेट, हुक्का या अन्य किसी भी रूप में सेवन करने से बचें
· स्मोकिंग बंद करने से लंग कैंसर या फेफड़ों से जुडी अन्य खतरनाक बिमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है
· धूम्रपान करने वाले व्यक्ति द्वारा निकाले गए धुआं को सेकेंड हैंड स्मोक कहते हैं। सेकंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आने से बचें क्योंकि इसके संपर्क में आने से भी लंग कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। खासकर बच्चों और वयस्कों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।