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उम्र बढ़ने के साथ आंखों की रोशनी की समस्याएं : डॉ. [प्रो] मीनाक्षी यादव धर

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : 12 अक्टूबर। विश्व दृष्टि दिवस के अवसर पर हम उन नेत्र रोगों पर ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे जो 50 वर्ष की आयु के बाद लोगों को प्रभावित करते हैं।
डॉ. [ प्रो.] मीनाक्षी यादव धर हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट नेत्र विज्ञान विभाग, अमृता अस्पताल, फ़रीदाबाद के अनुसार उम्र के दो चरम बिंदु – युवा और वृद्ध, आंखों की समस्याओं से अधिक प्रभावित होते हैं। नेत्र रोगों के कारण दृष्टि की हानि हो सकती है जो प्रतिवर्ती और अपरिवर्तनीय हो सकती है। अपरिवर्तनीय मामलों में, खोई हुई दृष्टि वापस नहीं आती है और इसका एक उदाहरण ‘ग्लूकोमा’ है जिसे हिंदी में काला मोतिया कहा जाता है।
इसके विपरीत मोतियाबिंद (कैट्रेक्ट) के कारण होने वाला अंधापन (जो अंधेपन का सबसे सामान्य कारण है) प्रतिवर्ती है – इसे ‘सफ़ेद मोतिया’ कहा जाता है।
मोतियाबिंद सर्जरी कॉर्निया के किनारे पर बने 2.2 से 2.8 मिमी के छोटे चीरे के माध्यम से फेकोइमल्सीफिकेशन के साथ की जाती है, और एक इंट्राओकुलर लेंस [आईओएल] डाला जाता है।
आज, मोतियाबिंद सर्जरी, रिफ्रेक्टिव सर्जरी के समान है जिससे कि मरीज सभी दूर की चीजों को स्पष्ट रूप से चश्मे के बिना देखना चाहते हैं। मोतियाबिंद सर्जरी का उद्देश्य न केवल अपारदर्शी लेंस को हटाना है, बल्कि रोगियों को चश्मे के बिना निकट और दूर दोनों देखने की आजादी देना है। ऐसे आईओएलएस हैं जो रोगी को चश्मे के बिना सभी दूरी तक देखने की अनुमति देते हैं, जिससे एक व्यक्ति कार चला सकता है, कंप्यूटर देख सकता है किताबें और मोबाइल पढ़ सकता है – इन्हें मल्टीफोकल आईओएल कहा जाता है।
इन दिनों, अधिकांश लोगों को अपने मोबाइल को देखने के लिए निकट दृष्टि की आवश्यकता होती है, न की पढ़ने की। यह ‘ एक्सटेंडेड डेप्थ ऑफ फोकस आईओएल’ द्वारा अच्छी तरह से हासिल किया गया है जो रोगियों को 95% चश्मे से मुक्त कर देता है, उन्हें केवल बारीक प्रिंट पढ़ने के लिए चश्मे की आवश्यकता होती है।
दृष्टिवैषम्य (एस्टिगमेटिज्म) के रोगियों के लिए सिलेंड्रेकल पावर को भी इंट्राओकुलर लेंस में शामिल किया जा सकता है और इन्हें टोरिक लेंस कहा जाता है। अधिकांश मरीज़ जिन्होंने अपने पूरे वयस्क जीवन में चश्मा पहना है, आईओएल डालने के बाद ‘वाह’ कारक महसूस करते हैं। मोतियाबिंद सर्जरी का परिणाम आम तौर पर अच्छा होता है, बशर्ते उस आंख में दृश्य हानि का कोई अन्य कारण न हो। यह आमतौर पर एक दिन की प्रक्रिया है और सर्जरी के बाद, 8-12 सप्ताह आईड्रॉप्स डालनी होती है। मरीज़ देखने के लिए अपनी दृष्टि का उपयोग कर सकते हैं और करना भी चाहिए। केवल स्पष्ट सुरक्षात्मक चश्मे की आवश्यकता होती है, काला चश्मा अतीत की बात है और इसकी आवश्यकता केवल तभी होती है जब मरीज को रोशनी से समस्या होती है।
ग्लूकोमा को दृष्टि का साइलेंट किलर कहा जाता है और यहां आंख के भीतर उच्च दबाव के कारण आमतौर पर ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचता है। यह रोग देर तक कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करता है। यह दो प्रकार का होता है – खुला कोण (ओपन एंगल) और संकीर्ण कोण (नैरो एंगल), जिसे गोनियोस्कोपी नामक अंधेरे कमरे में स्लिट लैंप पर की जाने वाली एक सरल प्रक्रिया द्वारा विभेदित किया जाता है। जिन आंखों में पानी में रुकावट होती है उनको गोनियोस्कोपी में बंद पाए गए कोणों को इरिडोटॉमी नामक लेजर प्रक्रिया द्वारा खोला जा सकता है, इस प्रकार आंखों के दबाव को कम करता है और ऑप्टिक तंत्रिका की रक्षा करता है। ग्लूकोमा के अन्य रोगियों की आंखों का दबाव आईड्रॉप्स से कम हो जाता है और कुछ को सर्जरी की आवश्यकता होती है। इन सभी मरीजों को फॉलोअप की जरूरत है। हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपचार के साथ मरीज़ के पास कार्यात्मक दृष्टि हो जो उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित न करे।
मरीजों की आंखें सूखी हो सकती हैं जिससे आंखों में खुजली होती है लेकिन इससे आंखों की रोशनी को कोई खतरा नहीं होता है और आईड्रॉप्स और जैल से राहत मिलती है।

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