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संसद में किसानों का मुददो नहीं उठाने दिए जाते : डाॅ सुशील गुप्ता

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 2 फरवरी। एक तरफ सरकार बार्डर पर बैंठे किसानों की सुध तक नहीं ले रही है, वहीं दूसरी ओर जब बात किसानों से संवाद की आती है तो उनके स्वागत के लिए सरकार  कटीलें तारों लाठी डंडो और ठंडे पानी की बौछारो को तैयार रखती है। यह दोगली राजनीति नहीं तो और क्या है। यहीं नहीं, जब संसद में सरकार को देश के अन्नदाता के मुददो की बात करनी चाहिए तब भी उसका ध्यान केवल और केवल पूंजीपतियों और निजी कम्पनियों को फायदा पहुंचाने की तरफ है। यह कहना है, राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के मुख्य सचेतक डा सुशील गुप्ता का।
डा गुप्ता ने कहा कि संसद में सबसे पहला काम किसानों के लिए बनें तीनों बिलों पर चर्चा का होना था। लेकिन केन्द्र की भाजपा सरकार का व्यापारी प्रेम उसे और कुछ सोचने का समय तक नहीं देती। उन्होंने कहा कि सरकार को सबसे पहले 2 महीनें से कडाके की ठंड में सडकों पर ठिठुर रहे किसानों की बात करनी चाहिए और उनकी मांगों पर विचार करते हुए उन्हें संतुष्ट कर वापस घर भेजने की दिशा में काम करना चाहिए। मगर इसके प्रति प्रधानमंत्री मोदी जी के कानों में जूं तक नहीं रेंगती।
यहीं नहीं संसद मंे जब हमारे द्वारा किसानों के मुददे उठाए जाते है तो, संसद को एक के बाद एक स्थगित कर दिया जाता है। आज यहीं  वाक्या हुआ जब हमने संसद में बार-बार किसानों की के मुददे उठाने की कोशिश की तो सभापति महोदय ने एक के बाद एक तीन बार कार्यवाही को स्थागित किया और अंत में अगले दिन तक के लिए सभा को स्थगित कर यह दर्शा दिया कि सरकार इतना सब होने के बावजूद भी हठ पर अडी है और किसानों के मुददो पर चर्चा करने को तैयार नहीं है।
डा गुप्ता ने कहा कि सरकार कानूनों पर बात करने की बजाए, उनके रास्ते में कटीले तार, व कीले लगा किसानों को नुकसान पहुंचाने का काम कर रही है। इसके बावजूद किसान अपने संयम व धैर्य का परिचय देते हुए शांतिपूर्ण रूप से धरने को सुचारू रूप से चलाए हुए है।  पुलिस के लाठी-डंडो व पानी की बौछारों को सहने के बावजूद भी अन्नदाता सरकार से उम्मीद लगाए बैठा है कि उनके पक्ष की बात भी सुनी जायेगी।
डा सुशील गुप्ता ने कहा कि हमारी पार्टी पहले दिन से ही संसद से सडक तक किसानों के मुददो को उठा रही है, और जब तक यह तीनों काले कानून वापस नहीं हो जाते हम किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करेंगे।

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