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लंबे समय तक अनियंत्रित बीपी के कारण बढ़ जाता है हार्ट का साइज़: डॉ. राकेश राय सपरा

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : लोगों में हाइपरटेंशन के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 17 मई को ‘वर्ल्ड हाइपरटेंशन डे’ मनाया जाता है। इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए डॉ. राकेश राय सपरा, प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी-कार्डियोलॉजी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने कहा कि हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) अपने आप में एक क्रोनिक बीमारी होती है। जब क्रोनिक यानि लंबे समय तक ब्लड प्रेशर अनियंत्रित रहे तो हार्ट पर बुरा असर पड़ता है। ब्लड प्रेशर बढ़ने पर ब्लड को नसों में पहुचाने के लिए हार्ट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि नसें सख़्त हो जाती हैं। ऐसे में खून को आगे पंप करने के लिए जब हार्ट ज्यादा मेहनत करता है तो हार्ट की मांसपेशियों मोटी हो जाती हैं जैसे-जैसे हार्ट की मांसपेशियां मोटी होती जाती हैं, वैसे-वैसे हार्ट का साइज़ बढ़ने लगता है लेकिन यह शुरूआती चरण होता है। इसे मेडिकल टर्म में हाइपरट्राफी कहते हैं। लेकिन हार्ट के चैम्बर्स का साइज़ नहीं बढ़ता है। अगर ब्लड प्रेशर अनियंत्रित ही बना रहता है तो हार्ट फैलने लगता है, हार्ट का साइज़ और बढ़ जाता है। जब हार्ट मेहनत करके हार जाता है तो हार्ट और ज्यादा फैल जाता है और फिर सच में हार्ट फेलियर की स्थिति आ जाती है।

हार्ट की मांसपेशियां मोटी होने से जो हार्ट फेलियर होता है, उसे डायस्टोलिक हार्ट फेलियर कहते हैं लेकिन इसमें हार्ट की पम्पिंग सामान्य होती है लेकिन हार्ट रिलैक्स नहीं कर पाता और हृदय में रक्त भरने की क्षमता कम हो जाती है। जब हार्ट फ़ैल या चौड़ा हो जायेगा तो उसकी पम्पिंग पॉवर भी कमजोर हो जाएगी, तब सिस्टोलिक हार्ट फेलियर की स्थिति आ जाती है। इन दोनों स्थिति में लक्षण समान होते हैं जैसे हार्ट के पीछे नसों में प्रेशर बढ़ जाता है। फेफड़ों की नसों में प्रेशर बढ़ेगा तो फेफड़ों में पानी भरेगा और साँस फूलने लगेगी। अगर पूरे शरीर की नसों में प्रेशर बढेगा तो पूरे शरीर में सूजन आ जाएगी। ऐसे ही आंतों में सूजन आएगी तो पाचन क्रिया प्रभावित होगी। लिवर में सूजन आने पर लिवर फेलियर का रिस्क बढ़ सकता है।

रोजाना ओपीडी में क्रोनिक अनियंत्रित ब्लड प्रेशर के 1-2 मरीज आ जाते हैं। ब्लड प्रेशर बढ़ने पर मरीज को महसूस नहीं होता है लेकिन बढ़ा हुआ बीपी धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाता रहता है। इसका ज्यादातर हार्ट फेलियर की कंडीशन में पता चलता है इसलिए अनियंत्रित ब्लड प्रेशर को साइलेंट किलर माना जाता है। 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में क्रोनिक अनियंत्रित ब्लड प्रेशर की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है क्योंकि इस उम्र में नसें ज्यादा सख़्त हो जाती हैं। ऐसे में ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करना ज्यादा मुश्किल हो जाता है। दवाओं से भी ब्लड प्रेशर कंट्रोल नहीं हो पाता है। कुछ लोगों के शरीर में किसी बीमारी की वजह से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है, इसे सेकेंडरी हाइपरटेंशन कहते हैं। इस स्थिति में भी बीपी को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।

अगर हार्ट फैलने की स्थिति नहीं आई है तो बीपी को कंट्रोल करके हार्ट फेलियर को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर एक बार हार्ट चौड़ा हो गया तो बीपी को कंट्रोल करने के बाद भी हार्ट के फंक्शन को रिकवर नहीं किया जा सकता है। फिर हार्ट फेलियर की स्थिति अपरिवर्तित हो जाती है। इसके अलावा अनियंत्रित ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन स्ट्रोक, किडनी फेलियर का जोखिम भी बढ़ जाता है।

इलाज के तौर पर मरीज का दवाओं द्वारा ब्लड प्रेशर को कंट्रोल किया जाता है लेकिन दवा शुरू करने से पहले मरीज को नमक कम खाने, तली-भुने खाद्य पदार्थों के सेवन से बचने, शराब के सेवन से बचने और रोजाना एक्सरसाइज, योग एवं मैडिटेशन करने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में अगर दवाओं से ब्लड प्रेशर कंट्रोल नहीं होता है तो रीनल आर्टरी एब्लेशन यानि किडनी में खून ले जाने वाली धमनियों के बाहर की नर्वस/तंत्रिकाओं को लेज़र या रेडियोफ्रीक्वेंसी एनर्जी से नष्ट किया जाता है जिससे ब्लड प्रेशर को अच्छे से नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

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