Faridabad NCR
अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेला मे 50 ग्राम के नेपाली पश्मीना शाल की बढ़ रही डिमांड
Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 29 मार्च। भले ही मौसम गर्मी का हो लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में जंगल सिल्क एंड पश्मीना उद्योग चला रही नेपाल की पूजा के स्टॉल पर पशमीना से बने उत्पादों के शौकीनों की भीड़ लगी है। आराम, सुंदरता और स्टेटस सिंबल का प्रतीक पश्मीना शॉल की दीवानगी यूरोपियन देशों तक छाई हुई है।
सिल्क के पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाते हुए पूजा ने इसे पश्मीना उद्योग में बदल दिया। पूजा के पिता तेज नारायण राम इसी अंतरराष्ट्रीय मेले में कला रत्न अवार्ड और कलानिधि अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं।
पूजा ने बताया कि पशमीना के लिए बकरी के बच्चे की गर्दन का बाल इक_ा किया जाता है। इसमें बकरी को बिना नुकसान पहुंचाए कंघी से बाल निकाले जाते हैं। बड़ी बकरी का बाल इतना सॉफ्ट नहीं होता इसलिए वे अपने उत्पाद बनाने के लिए केवल बकरी के छोटे बच्चे की गर्दन के बाल का उपयोग करते हैं। 50 ग्राम का पश्मीना शाल बनाने के लिए 17 बकरियों के बच्चों की गर्दन के बाल की जरूरत होती है। एक बकरी के बच्चे से लगभग 3 ग्राम बाल एकत्रित होते हैं। अधिकतर कच्चा माल वे मंगोलिया से मंगवाते हैं फिर उसे गांधी चरखा से सूत कातकर पशमीना के उत्पाद बनाती हैं।
फिलहाल उनके स्टॉल पर शॉल, स्टाल, मफलर, टोपी, कंबल तथा स्वेटर आदि उत्पादों की खूब बिक्री हो रही है। सोशल मीडिया के जरिए भी उनके पास बहुत सारे आर्डर आ रहे हैं। फैशन उद्योग में पशमीना की मांग लगातार बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि यह काम इतना महीन होता है कि इसको बनाने में वर्षों लग जाते हैं। काम जितना महीन होगा कीमत उतनी ज्यादा।
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40 साल पहले दसवीं में फेल होकर घर से भागकर नेपाल गए थे। तेज नारायण राम तेज नारायण राम ने बताया कि वह मूल रूप से बिहार के भागलपुर से हैं। 40 साल पहले वह मैट्रिक में फेल हो गए। मां बाप को बिना बताए वह नेपाल चले गए। वहां पर उन्होंने यह बिजनेस शुरू किया। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनका पुश्तैनी धंधा इस तरह बड़े उद्योग में बदल जाएगा। उनके बच्चे नेपाल में ही पैदा हुए हैं जो वहीं से अपना काम करेंगे तथा वे खुद वापस अपनी मातृभूमि पर आकर यहां से इस उद्योग को बढ़ाएंगे। उन्होंने बताया कि भारत में कौशल विकास तथा स्वरोजगार के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं उन्हें प्रभावित कर रही है ऐसे में वे अपना अंतिम समय अपनी मातृभूमि पर आकर बिताना चाहते हैं।