Faridabad NCR
शताब्दी महाविद्यालय में श्रीमद्भगवद्गीता पर अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार

Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : डीएवी शताब्दी महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सहयोग तथा ग्लोबल संस्कृत फोरम उत्तरप्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित “आधुनिक परिप्रेक्ष्य में श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता” विषय को लेकर एक दिवसीय ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यकारी प्राचार्या डॉ अर्चना भाटिया ने सभी अतिथियों का स्वागत वक्तव्य में कहा कि गीता हमें जीवन की जटिलताओं को समझने और उनसे निपटने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने, कर्मयोग के माध्यम से निस्वार्थता के साथ कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती है। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पदमश्री डॉ हरमोहिंदर सिंह बेदी ने बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता एक सार्वकालिक ग्रंथ है जो सभी कालों में मनुष्यों के लिए मार्गदर्शक है। विश्व की लगभग 3600 भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स भी अंतरिक्ष मे श्रीमद्भगवद्गीता की एक प्रति अपने साथ लेकर गयीं व प्रतिदिन पढ़कर आत्मसात करती रहीं। विश्ववारा कन्या गुरुकुल रुड़की की प्राचार्या पद्मश्री डॉ सुकामा आचार्या ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता निष्काम कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। फल की अभिलाषा के बिना किये गए कार्य निष्काम की श्रेणी में आते हैं। मनुष्य को सदा उत्तम कर्म करने चाहिए। डीएवी प्रबंधकर्तृ समिति नई दिल्ली के प्रकाशन विभाग निदेशक ने कहा कि कर्म प्रत्येक व्यक्ति करता है,वे कर्म अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। इंद्रियों को आनंद बुरे कर्मों से भी मिल सकता है लेकिन कर्म ऐसे हों जिससे आत्मा को आनंद मिले। भगवद् गीता मानवता के लिए जीवन संहिता और आध्यात्मिक प्रकाश स्तंभ है।
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के निदेशक डॉ धर्मदेव विद्यार्थी ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ने पूरे विश्व को शांति का संदेश दिया है। ऐसा ग्रंथ केवल भारत के पास है जो मानवता को कल्याण का रास्ता दिखाता है। एमडीयू संस्कृत विभाग से प्रो. सुनीता सैनी ने कहा कि अपने जीवन को सार्थक बनाने लिए गीता का पठन पाठन हर किसी को करना चाहिए। गीता में योग, निष्काम कर्म आदि पर विस्तृत रूप से उपदेश दिया है। गीता जीवन प्रबंधन का ग्रंथ है। जीवन की राह में हम कैसे चलें हमारे आचार-विचार, आहार-विहार कर्मों को यथायोग्य करने का प्रयोग ही योग का मार्ग है। चीन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय वक्ता डॉ विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक युग में गीता काम क्रोध, मानसिक रोगों का समाधान करती है। न्यूयॉर्क से डॉ अमरजीत आर्य ने गीता के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया तथा बताया कि किस प्रकार हम गीता में वर्णित ज्ञान का अनुसरण कर जीवन में सफलता के नए आयाम प्राप्त कर सकते हैं। डॉ दिनेश कुमार ने अपने वक्तव्य में अनेक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया कि गीता जीवन प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण प्रकट करती है।
इस संगोष्ठी में भारतवर्ष के 18 राज्यों के 85 प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। इसके लिए ऑनलाइन 4 ट्रैक बनाये गए। प्रथम ट्रैक के सत्राध्यक्ष प्रोफेसर रजनीश कुमार मिश्रा, जे एन यू, नई दिल्ली, द्वितीय ट्रैक पर डॉ पुष्पेंद्र जोशी पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला तृतीय ट्रैक के डॉ सत्यप्रिय आर्य, जम्मू विश्वविद्यालय तथा चौथे ट्रैक के सत्राध्यक्ष डॉ अनिल कुमार, दिल्ली शिक्षा विभाग रहे। उन्होंने सभी प्रतिभागियों के शोधपत्रों का मूल्यांकन कर अपने सुझाव दिए। इस कार्यक्रम के संयोजक संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ अमित शर्मा, पर्यवेक्षिका डॉ सुनीति आहूजा रहीं। मैडम मीनाक्षी कौशिक ने सफलतापूर्वक मंच संचालन किया। श्री प्रमोद कुमार, श्री दिनेश कुमार, मैडम उत्तमा तथा इ एच अंसारी तकनीकी संयोजक के रूप में रहे। महाविद्यालय के अनेक प्राध्यापकों तथा विद्यार्थियों ने वक्ताओं के विचारों को सुना।