New Delhi Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : ‘दियासलाई’ नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा है। यह पुस्तक सत्यार्थी की जीवन यात्रा, उनके संघर्ष और दुनिया भर के बच्चों को शोषण से मुक्त करने की उनकी प्रेरक कहानियों को दर्शाती है। सत्यार्थी लिखते हैं “अंधेरे का अंत हमेशा किसी छोटी सी चिंगारी से होता है। जैसे माचिस की एक तीली सदियों के घने अंधेरे को चीरकर रोशनी फैला सकती है। यही विचार मेरे जीवन का आधार बन गया। ग़ुलामी, शोषण और उत्पीड़न से मुक्त कराए गए मेरे हज़ारों बच्चे आज दियासलाइयां बनकर ढेरों दीप प्रज्ज्वलित कर रहे हैं।”
आत्मकथा के 24 अध्यायों में सत्यार्थी ने विदिशा के एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्म से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और नोबेल शांति पुरस्कार तक की अपनी यात्रा को उकेरा है। वे अपने संघर्षपूर्ण जीवन की कथा भी बताते हैं और उन प्रयासों की जानकारी भी देते हैं, जो उन्होंने बच्चों की मुक्ति और कल्याण के लिए किए। मसलन, युवावस्था में एक तथाकथित अछूत महिला के हाथों से खाना खाने पर उन्हें उनके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया था। उस प्रकरण के बाद उन्होंने अपना जातीय उपनाम शर्मा हटाकर ‘सत्यार्थी’ लिखना शुरू किया। वहीं, राजस्थान के नाथद्वारा में श्रीनाथ जी मंदिर में जब दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए संघर्ष किया तो उन्हें विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा। इलाहाबाद में जब एक कालीन कारखाने में बंधक दो बच्चों को छुड़ाने गए तो लाठियां और कुल्हाड़ियां लेकर 30-40 लोग उन पर हमला करने को तैयार दिखे। वहीं, एक सर्कस से बच्चों को छुड़ाने के चक्कर में उनकी जान जाते-जाते बची। सत्यार्थी बताते हैं, बाल श्रमिकों को छुड़ाने के बाद जब वह उनको स्कूल में एडमिशन के लिए ले जाते थे, तो टीचर साफ इनकार कर देते थे। क्योंकि भारत के संविधान में शिक्षा मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं थी।
युवावस्था में परंपरागत पढ़ाई से दूर भागना, संन्यासी बनने के बारे में सोचना, बाल अधिकारों के लिए दुनिया के 186 देशों की यात्रा, अपने फ्लैट में चोरी होने पर पहली बार लॉकर खरीदना जैसे कई दिलचस्प प्रसंग दियासलाई में दर्ज हैं। सहज और सम्प्रेषणीय भाषा में लिखी गई यह पुस्तक हमें प्रेरित भी करती है, संवेदनशील भी बनाती है, और कई महत्वपूर्ण तथ्यों से भी परिचित कराती है। कैलाश सत्यार्थी ने आत्मकथा को अपने माता-पिता और उन तीन साथियों को समर्पित किया है, जिन्होंने बाल श्रम, शोषण और अन्याय से बच्चों को बचाने की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी थी।