Connect with us

Faridabad NCR

मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने वैरिकाज़ वेंस और बवासीर के उपचार पर एक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया

Published

on

Spread the love

Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : 11 अगस्त। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद और मिनिमली इनवेसिव एवं जनरल सर्जरी विभाग ने वैरिकोज वेन्स और एनोरेक्टल रोगों जैसे कि बवासीर, भगंदर या फिस्टुला और फिशर के एडवांस्ड उपचार के लिए लेजर क्लीनिक की शुरुआत की। दो दिवसीय कार्यक्रम में भारत के डॉक्टरों को लाइव कार्यशालाओं के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया। मिनिमली इनवेसिव एवं जनरल सर्जरी टीम का नेतृत्व मिनिमली इनवेसिव एवं जनरल सर्जरी के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. मनु शंकर ने किया तथा इस दौरान डॉ. नितिन सरदाना और डॉ. बीरबल कुमार का भी विशेष योगदान रहा।

वैरिकोज वेंस बड़ी, सूजी हुई और मुड़ी हुई नसें होती हैं जो आमतौर पर नीले या गहरे बैंगनी रंग की दिखाई देती हैं। ये तब होती हैं जब नसों में ब्लड फ्लो को नियंत्रित करने वाले वाल्व कमजोर या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे रक्त जमा हो जाता है और नसें उभर जाती हैं। वैरिकोज वेंस आमतौर पर खड़े रहने और चलने के दबाव के कारण पैरों और टांगों को प्रभावित करती हैं। इसके कारणों में वाल्वों का ठीक से काम न करना, जिससे रक्त का पीछे की ओर प्रवाह नहीं हो पाता और जमा नहीं हो पाता, शरीर में हार्मोनल परिवर्तन, आयु के कारण नसों की लोच में कमी, तथा लम्बे समय तक खड़े रहना शामिल हो सकते हैं, जो कार्य से संबंधित हो सकते हैं। हालांकि वैरिकोज वेंस अक्सर कॉस्मेटिक चिंता का विषय होते हैं, लेकिन कभी-कभी वे अल्सर, रक्तस्राव और डीप वेन थ्रोम्बोसिस जैसी अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बन सकती हैं। अगर आप गंभीर लक्षण का अनुभव करते हैं, तो उचित निदान और उपचार के लिए हेल्थ केयर प्रोफेशनल से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

पाइल्स को हेमोरॉयड के नाम से भी जाना जाता है, इस बीमारी में मलाशय और गुदा (मलद्वार) की नसों में सूजन आ जाती है, जिसकी वजह से असुविधा होती है और खून भी बहता है। ये वैरिकोज वेंस की तरह होते हैं लेकिन मलाशय और गुदा के निचले हिस्से में होते हैं। इसके कारणों में मल त्याग के दौरान जोर लगाना, लगातार दस्त होना, लम्बे समय तक बैठना, विशेषकर शौचालय की सीट पर बैठना, तथा मोटापा शामिल हो सकते हैं।

डॉ. मनु शंकर, क्लीनिकल डायरेक्टर, मिनिमली इनवेसिव और जनरल सर्जरी ने कहा “वैरिकोज वेंस और बवासीर के लिए मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं ने रोगी देखभाल में बहुत ज्यादा सुधार कर दिया है, तथा कम समय में ठीक होने और न्यूनतम असुविधा के साथ प्रभावी समाधान प्रदान किए हैं। वैरिकोज वेंस के लिए, एंडोवेनस लेजर थेरेपी और स्क्लेरोथेरेपी जैसी तकनीकें बेहतरीन कॉस्मेटिक परिणामों और जटिलताओं के कम जोखिम के साथ टार्गेटेड उपचार प्रदान करती हैं। इसी प्रकार, बवासीर के लिए मिनिमली इनवेसिव उपचार सर्जरी के बाद होने वाले दर्द को कम कर काफी राहत देता है और दैनिक गतिविधियों में शीघ्र वापसी में मददगार है। ये एडवांसमेंट्स हमें इन सामान्य स्थितियों से अधिक कुशलतापूर्वक निपटने में सक्षम बनाती है, जिससे रोगियों के परिणामों और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार होता है।”

लेजर सर्जरी से मरीजों के इलाज में न्यूनतम निशान, कम दर्द और शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है। लेजर सर्जरी में केवल छोटे चीरों या छेद करने की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप टिश्यूज को कम क्षति होती है और निशान भी कम पड़ते हैं। दो मिलियन पुरुषों और महिलाओं में वेनस अल्सर सहित क्रॉनिक वेनस इंसफिशिएंसी के लक्षण और संकेत विकसित होंगे। 1972 में भारतीय रेल कर्मियों पर किए गए एक महामारी विज्ञान सर्वेक्षण से पता चला कि दक्षिण भारत में वैरिकोज वेन्स का फैलाव 25% और उत्तरी भारत में 6.8% था। यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 20% वयस्कों को जीवन में किसी न किसी समय वैरिकोज वेंस की समस्या होगी। हालांकि ये वृद्ध लोगों में अधिक आम हैं, लेकिन कभी-कभी युवा लोग भी इससे पीड़ित होते हैं। हर साल भारत में लगभग 10 मिलियन लोग बवासीर के दर्द से पीड़ित होते हैं, यह एक ऐसी बीमारी है जो तनाव, अनिद्रा, कब्ज और शहरी लोगों की सेडेंटरी लाइफस्टाइल और फास्ट फूड के प्रति बढ़ते रुझान के कारण तेजी से फैल रही है। एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में बवासीर की दर विश्व में सबसे अधिक है। अध्ययन से पता चला कि लगभग 11% आबादी बवासीर से पीड़ित है, तथा शहरी क्षेत्रों में इसका प्रचलन अधिक है। यह स्थिति महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक आम है, तथा उम्र बढ़ने के साथ इसका जोखिम भी बढ़ जाता है।

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2024 | www.hindustanabtak.com