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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : नवरात्रों के शुभारंभ होते ही महारानी वैष्णो देवी मंदिर में माता शैलपुत्री की भव्य पूजा अर्चना की गई. मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने को नवरात्रि की सुबकामनए दी. इस अवसर पर उद्योगपति आर बत्रा, सहगल, हरीश गिरोटी पार्षद, विमल पूरी नेतराम, सोनिया बत्रा, करण भाटिया, फकीरचंद तथा प्रीतम धमीजा ने हवन और पूजन में हिस्सा लिया. श्री भाटिया ने आए हुए सभी अतिथियों को माता की चुनरी और प्रसाद भेंट किया. श्री भाटिया ने माता शैलपुत्री की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ, इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है. एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। श्री भाटिया ने कहा कि माता शैलपुत्री की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।