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Faridabad NCR

सामाजिक जंचेतना के लेखक राम ‘पुजारी’ एक युवा

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : हिन्दी के लोकप्रिय साहित्य को हमेशा से ही कमतर आँका गया है, जबकि पढ़ा सबसे ज्यादा यही जाता है । आदरणीय देवकीनन्दन खत्री जी ने जिस तिलिस्मी रहस्यमय संसार की रचना की थी उसकी को गोपालराम गहमरी जी ने आगे बढ़ाया । माना जाता है कि उस जमाने में जबकि उर्दू में किताबें छपा करती थीं तब चंद्रकांता को पढ़ने के लिए लाखों  लोगों ने हिन्दी सीखी थी । हिन्दी के प्रसार और प्रचार में लोकप्रिय साहित्य के योगदान को हम नजरंदाज नहीं कर सकते । उर्दू के मशहूर लेखक इब्ने सफ़ी के उपन्यास उस दौर में हिन्दी में भी साथ-साथ छपा करते थे । हम इमरान, विनोद-हमीद को कैसे भूल सकते हैं !हम जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी के राजेश, जगत, जगन और गोपाली को भी नहीं भुला सकते । विजय-रघुनाथ, देवराज चौहान, विमल और कर्नल रंजीत भी यादगार पात्र हैं । हिन्दी को घर-घर पहुँचने में कई सामाजिक लेखकों का भी योगदान रहा है जैसे गुलशन नन्दा, राजहंस, मनोज, दत्तभारती, रानु और कुशवाहा कान्त । पिछले दिनों लुगदी साहित्य कहलाए जाने वाले इस लोकप्रिय जगत के कई लेखकों जैसे आबिद रिजवी, परशुराम शर्मा, फारूक अर्गली(रति मोहन), योगेश मित्तल, हादी हसन (विक्की आनंद),धरम बरिया (धरम-राकेश)और वेद प्रकाश काम्बोज से इस विषय पर चर्चा हुई  । उस दौर में जासूसी लेखन में विजय-रघुनाथ सीरीज़ बहुत ही प्रसिद्ध हुई थी । इतनी की उनके पात्रों को लेकर कई नकली उपन्यास भी बाज़ार में आने लगे । उसी सीरीज़ के जनक वेद प्रकाश काम्बोजआजकलपौराणिक एवं ऐतिहासिक उपन्यास-लेखन कर रहे हैं । पेश उनसे से हुई बातचीत के कुछ अंश।

राम ‘पुजारी’: सर,जैसा कि हमें मालूम हुआ है कि आपके परिवार की लालकिले में आर्टिफैक्ट्स की मशहूर शॉप है । और आप अपने स्कूली दिनों से वहाँ अपने पिता जी का हाथ बंटाने जाते रहते थे । तो, उस हिसाब से आपको एक बिजनेस मैन होना चाहिए था । आप लेखन क्षेत्र में कैसे आ गए इस बारे में थोड़ा बताइए ? काम्बोज जी : (थोड़ा मुसकुराते हुए) यह कौन से कानून में लिखा है भाई कि दुकानदार का बेटा लेखक नहीं बन सकता ! वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि  मेरे बाऊजी को भीलिखने-पढ़ने का काफी शौक रहा है, ज्यादातर तो वे धार्मिक किताबें ही पढ़ते थे जैसे गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली कल्याण पत्रिका और उपनिषद आदि । लेकिन कामायनी भी उनकी प्रिय पुस्तक थी जिसे वे अक्सर पढ़ते रहते थे ।

राम ‘पुजारी’: आपका पहला उपन्यास कौन सा था और कब प्रकाशित हुआ था ?काम्बोज जी:‘कंगूरा’नाम था उसका जो शायद सन 1958 में रंगमहल कार्यालय,खारी बावली से प्रकाशित हुआ था । राम ‘पुजारी’: एक बिजनेस मैन यही चाहता है कि उसका बिजनेस उसके बच्चे संभालें किन्तु आपका झुकाव तो किताबों की तरफ था । फिर आपकी एक पुस्तक भीप्रकाशित हो चुकी थी । इस  पर आपके पिता जी की कैसी प्रतिक्रिया थी काम्बोज जी: कोई खास नहीं (वे तुरंत ही बोले ।फिर सोचते हुए बोले) जासूसी साहित्य पढ़ने से मुझे भी खूब रोका गया था, उस जमाने में ऐसा ही था । मेरी तो पिटाई भी हुई । किन्तु मैं अपने इस शौक को पूरा करने के लिए छिप-छिपा कर पढ़ता ही गया । फिर जब कंगूरा प्रकाशित हुआ तो सबको थोड़ा आश्चर्य भी हुआ । बीजी(माँ) तो शायद हनुमान चालीसा या आरती संग्रह के अलावा कभी कुछ नहीं पढ़ती थी ।हाँ,बाऊजी अवश्य कुछ न कुछ पढ़ते रहते थे । मुझे नहीं लगता कि उन्होंने कभी मेरा कोई उपन्यास पढ़ा होगा । फिर भी एक आश्चर्य मिश्रित गर्व सा जरूर था कि स्कूल कीपढ़ाई में औसत उनका बेटा अचानक इतना काबिल हो गया कि उसके नाम से किताबें छपने लगीं ।

राम ‘पुजारी’:आपके प्रेरणा स्रोतऔर आदर्श कौन-कौन से लेखक हैं और आपकी पसंदीदा पुस्तकें कौन-कौन सी हैं काम्बोज जी: देखो भाई,जहाँ तक मेरे प्रेरणा स्रोत और आदर्श सवाल है तो वो कोई एक दो नहीं,अनेक हैं । बचपन से ही किस्से-कहानियों के प्रति तीव्र आकर्षण था । घर में ‘कल्याण’पत्रिका आरती ही थी । उसके नए-पुराने अंक अलमारी से भरे रहते थे । इसीलिए जब भी मौका मिलता तो कोई भी अंक निकाल कर पढ़ने लगता । लेकिन पढ़ता उनमें नीति कथा के रूप में छपी छोटी कहानियों को ही था जो मुझे बड़ी रोचक लगती थी । उसमें छपे हुए लंबे-लंबे उपदेशात्मक अथवा अध्यात्मिक लेख बिलकुल नहीं भाते थे और ना ही उनमें मेरी कोई दिलचस्पी थी । फिर जब घर से बाहर की दुनियाँ के संपर्क में आया तो दूसरी ओर आकर्षित हो गया । फौरन कल्याण को छोड़ कर चंदा मामा से चिपक गया जो उस समय बच्चों की सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिका थी । इसके अलावा उस जमाने में प्रचलित — तोता-मैना, सिंहासन-बत्तीसी, बेताल, किस्सा गुल-बकावली, हातिमताई, अलीबाबा चालीस चोर इत्यादि जो भी हाथ लगता गया अपने हिसाब से पढ़ता गया और जासूसी उपन्यासों तक पहुँच गया ।

राम ‘पुजारी’: सर बात जब जासूसी उपन्यासों तक पहुँच ही गई है तो ये बताइए कि जासूसी में क्या-क्या पढ़ा काम्बोज जी : अब यह तो याद नहीं कि पहला जासूसी उपन्यास कौन सा और किस लेखक का पढ़ा था । लेकिन इतना याद है कि फिर सबकुछ छोडकर मैं उधर (जासूसी साहित्य की) ओर बढ़ता चला गया । सब जानते हैं कि हिन्दी में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने अपनी चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति नामक तिलिस्मी उपन्यास माला के द्वारा हिन्दी में रहस्य-रोमांच से भरपूर साहित्यकीपरंपरा का आरंभ किया था। जिसे गोपालराम गहमरी, हरीकृष्ण जौहर जो पहले उर्दू में लिखते थे और फिर देवकी बाबू की लोकप्रियता देखकर हिन्दी में लिखने लगे तथा किशोरीलाल गोस्वामी इत्यादि जैसे अन्य लेखकों ने भी अपना योगदान दिया । यदि देवकी बाबू रहस्य-रोमांच से भरपूर कौतूहल प्रधान साहित्य का गौमुख मान लिया जाए तो यह समझना बड़ा आसान होगा कि तब से लेकर अब तक हर छोटे-बड़े लेखक ने इस रस गंगा को समृद्ध करने में अपनी क्षमतानुसार भरपूर योगदान दिया है । यही कारण है कि जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो तब तक यह साहित्य बहुत समृद्ध हो चुका था।

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