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बरसात के मौसम में बढ़ जाता है अस्थमा अटैक का खतरा : डॉ. गुरमीत सिंह छाबरा

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने बताया कि आमतौर पर देखा गया है कि बरसात के मौसम में ब्रोन्कियल अस्थमा के मरीजों को साँस की समस्या बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब बारिश होती है तो हवा में हयुमिडिटी (उमस/ नमी) बहुत बढ़ जाती है। सामान्य नमी जिस पर हमारे फेफड़े अच्छे से काम करें, वो 30-50 प्रतिशत तक होती है। अगर हवा में नमी 30 प्रतिशत से कम है तो हवा को ड्राई कहा जाता है। अगर नमी 50 प्रतिशत से अधिक होती है तो इसे वेट (नमीयुक्त) कहा जाता है। जब भी नमी 50 परसेंट से ऊपर जाती है तो फेफड़ों की नलियौं में सूजन/इरीटेशन आ जाने से साँस की दिक्कत बढ़ जाती है। जब भी तेज बारिश होती है तो पेड़ों, फूलों और घास पर मौजूद पोलन (पराग) बिखर जाते हैं जिससे हवा में पोलन की मात्रा बढ़ जाती है। अगर किसी अस्थमा के मरीज को पोलन से एलर्जी है और जब वह उसे साँस के द्वारा अंदर लेते हैं तो इससे उस मरीज को साँस का अटैक पड़ सकता है।

बरसात के मौसम में नमी बढ़ने की वजह से हवा में फंफूद (फंगल स्पोर्स) की मात्रा बढ़ जाती है। जिन लोगों को फंगल स्पोर्स से एलर्जी है, उन्हें भी सांस और नजंले के अटैक पड़ जाते हैं। उन्हें नाक से पानी आना, छीकें आना, नाक बंद होना, नाक में खुजली होना, सरर्दद जैसी तकलीफ होने लगती है।

थंडरस्टॉर्म और लाइटनिंग (बिजली का कड़कना) की वजह से ब्रोन्कियल अस्थमा के अटैक का खतरा बढ़ सकता है। एक स्टडी में पाया गया कि अगर लाइटनिंग दिन में 1-9 बार कड़कती है तो अस्थमा अटैक 2.21 के फैक्टर से बढ़ जाते हैं।

तापमान में एक दम से गिरावट /बदलाव के कारण भी साँस के अटैक पड़ सकते हैं। जैसे-जैसे बादल छाते हैं और सूर्य की रोशनी कम होती है तो उससे भी हमारे मस्तिष्क, मूड और छाती पर असर पड़ता है। एंग्जायटी, मानसिक तनाव या डिप्रेशन के कारण भी लोगों को साँस के अटैक पड़ सकते हैं। बरसात के मौसम में आकाश में बिजली कड़कने की वजह से भी लोगों की साँस की दिक्कत बढ़ सकती है।

बरसात के मौसम में घटती-बढती उमस और घटते-बढ़ते तापमान के कारण साँस के रोगियों को अन्य लोगों की तुलना में साँस, खांसी, सीने में भारीपन, कफ आना, सांस मे सीटियाँ बजना, नाक से पानी आना, छींके आना या कई बार स्किन संबंधित एलर्जी की समस्या भी अधिक हो सकती है।

सलाह: घर के अंदर रहें या मास्क लगा कर ही घर से बाहर निकलें।

बारिश के मौसम में अस्थमा के मरीज अपना इनहेलर अपने पास रखें क्योंकि दिनभर तापमान में उतार-चढाव के कारण कभी भी साँस, खांसी की समस्या हो सकती है और इनहेलर तुरंत लेने की आवश्यकता पड़ सकती है।

एयर कंडीशनर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन एयर कंडीशनर का तापमान बहुत ठंडा या गर्म नहीं रखें, दोनों से ही दिक्कत हो सकती है। आप एयर कंडीशनर का टेंपरेचर 27-28 डिग्री रख सकते हैं। कहा जाता है कि एक अस्थमा मरीज के लिए 68 से 71 डिग्री फ़ारेनहाइट तापमान आरामदायक होता है

बरसात के मौसम में स्टीम बाथ लें, गर्म पानी/पदार्थ पिएं क्योंकि इससे आपके गले या सांस की नली में जमा बलगम बाहर आ जाता है, साँस की नली खुल जाती है जिससे सांस में आराम मिलता है।

अगर घर में किसी कमरे में दीवारों में सीलन है तो अस्थमा मरीज घर के उस कमरे में न रहें क्योंकि सीलन के कारण मरीज का अस्थमा ज्यादा बिगड़ सकता है। आप घर के उस हिस्से को ठीक कराऐं।

घर या ऑफिस में ऐयर प्यूरीफायर (हिपा फिल्टर युक्त) का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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