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श्री महारानी वैष्णो देवी मंदिर में पांचवे नवरात्रि पर हुई स्कंदमाता की पूजा, अंतर्राष्ट्रीय भजन गायक अनिल कत्याल सम्मानित

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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में नवरात्रों के पांचवे दिन स्कंदमाता की भव्य पूजा अर्चना की गई। प्रातकालीन आरती व हवन यज्ञ में माता के समक्ष पूजा अर्चना कर भक्तों ने अपनी हाजिरी लगाई। इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने हवन यज्ञ का शुभारंभ करवाया और भक्तों को नवरात्रों की शुभकामनाएं दी।

इस अवसर इंटरनेशनल भजन गायक अनिल कत्याल ने विशेष तौर पर मां वैष्णो देवी मंदिर पहुंचकर माता के दरबार में हाजिरी लगाई और हवन में आहुति दी। उन्होंने स्कंदमाता की विशेष पूजा अर्चना में भी हिस्सा लिया तथा अपनी अरदास लगाई। इस विशेष मौके पर प्रसिद्ध इंटरनेशनल भजन लेखक एवम गायक अनिल कत्याल (नीले) को चुन्नी ओढ़ाकर एवम स्मृति चिन्ह देकर धर्म संस्कृति के प्रचार, प्रसार में अहम भूमिका निभाने पर मन्दिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने सम्मानित किया. श्री भाटिया ने बताया कि अनिल कत्याल अब तक करीब 9500 भेंट, भजन लिख चुके है, इनके द्वारा लिखी भेंटो को मां वैष्णो देवी दरबार जम्मू में सुबह औऱ शाम को होने वाली दिव्य आरती में गाया जाता है, विशेष तौर पर दिल्ली से आए अनिल कत्याल ने महारानी वैष्णो देवी मंदिर में आरती करके मां भगवती जी के चरणों में अपनी हाजरी लगाई. मन्दिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने बताया कि हर नवरात्रों में अनिल कत्याल मां के चरणों में अपनी हाजरी लगाने आते है, इनके लिखे भजन देश विदेश में गाए जाते है और खास बात यह है कि इन भजनों की वैष्णो अराधना नाम से 6 पुस्तक भी मां के चरणो में अर्पित की जा चुकी है, यह पुस्तक सभी मां के भक्तो को निशुल्क वितरित की जाती है. जय माता दी. पांचवे नवरात्रि के अवसर पर श्री भाटिया ने भक्तों को स्कंद माता की महिमा से रूबरू करवाया।

श्री भाटिया ने बताया कि पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।  जो भी भक्त सच्चे मन से स्कंदमाता की पूजा अर्चना कर अरदास मांगता है वह अवश्य पूरी होती है।

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