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न्यायधीश ने अपने ही दिए फैसले को लेकर बना डाली एक बेहतरीन फिल्म

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New Delhi Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : बॉलीवुड में अक्सर गंभीर और ज्वलंत मुद्दों पर फिल्म मेकर फिल्में बनाते रहे है और दर्शको की एक बड़ी क्लास ने ऐसी फिल्मों को देखा और जमकर सराहा भी है ,लेकिन ऐसा शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ जब किसी न्यायधीश ने अपने ही दिए एक ऐसे फैसले को लेकर अपने दम पर फिल्म बनाने का हौसला दिखाया हो, लेकिन जस्टिस स्वाति चौहान ऐसी ही जस्टिस है जिन्होंने करीब 14 साल पहले अपने तीन तलाक को लेकर दिए गए एक ऐसे फैसले को लेकर फिल्म बना डाली जिस फैसले ने उस वक्त देश में बवंडर खड़ा कर दिया हो। यकीनन ऐसी ओजस्वी महिला की हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्रांतिकारी फैसला किया और सायरा खान केस को लेकर नामी फिल्म मेकर करण राजदान के साथ फिल्म बनाई और इस सप्ताह रिलीज भी की।
 इस फिल्म को सोल फिल्म्स के बैनर तले बनाया गया और फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता भी यही है कि इस फिल्म को एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने बनाया । फिल्म इंडस्ट्री में स्वाति चौहान का यह पहला कदम है और उन्होंने खुद ही इस फिल्म निर्देशित करने का फैसला भी लिया। इस फिल्म का सह-लेखन फिल्म निर्माता अभिनेता करण राजदान के साथ मिलकर किया।
स्टोरी प्लॉट
2014 में जस्टिस स्वाति चौहान ने अपने ही दिए तीन तलाक से जुड़े एक बेहद संवेदनशील सामाजिक कानूनी सब्जेक्ट पर फिल्म बनाई। मेरी नजर में यह फिल्म भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे में महिला अधिकारों, समानता और धार्मिक कानूनों के टकराव को पूरी ईमानदारी के साथ उजागर करती है। फिल्म की कहानी
मुस्लिम महिला सायरा खान ( पूनम दुबे )की है, जिसे उसका पति हनीफ (रजनीश दुग्गल )तीन तलाक के ज़रिए एकतरफा तलाक देता है। इसके बाद सायराअपने बच्चों से अलग हो जाती है और न्याय की लड़ाई करने का फैसला करती है। यह पूरी फिल्म सायरा खान की कानूनी और भावनात्मक जद्दोजहद को पूरी ईमानदारी के साथ दिखाती है, जिसमें सायरा अपने सम्मान और अधिकारों के लिए अंत तक संघर्ष करती है। सायरा के इस संघर्ष का क्या परिणाम निकलता है और क्या वह अपनी इस इकतरफा जंग को जीत पाती है या नहीं उसे जानने के लिए आपकी नजदीकी थिएटर में जाकर यह फिल्म देखनी होगी।
फिल्म देख कर आभास होता है कि 2014 के उस फैसले की “आत्मा” को फिल्म में बरकरार रखा गया है, बेशक फिल्म के पात्रों, नामों और स्थानों को पूरी तरह बदला गया है
ओवर ऑल
बेशक फिल्म की स्क्रिप्ट कुछ कमजोर है लेकिन फिल्म की मूल कथा को पूरी ईमानदारी के साथ पेश किया गया । अगर एक्टिंग की बात की जाए तो रजनीश दुग्गल ने अपने रोल को जीवंत कर दिखाया है वहीं करण राजदान वकील के रोल में फिट है फिल्म की लंबाई कुछ ज्यादा हो गई लेकिन फिल्म की कथा को जीवंत रखने के लिए यह जरूरी भी था
पूर्व जस्टिस स्वाति चौहान की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने ही दिए एक ज्वलंत मुद्दे पर दिए गए फैसले को लेकर पूरी ईमानदारी के साथ फिल्म बनाई
अगर आप अच्छी और दिल को छू लेने वाली फिल्में पसंद करते है तो इस फिल्म को मिस न करे।
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