Faridabad NCR
साँस की नली का सफल ऑपरेशन होने पर दो साल बाद मरीज ने ली खुलकर सांस
Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : सेक्टर-16 स्थित मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में ईएनटी और सीटीवीएस (कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी) टीम ने मिलकर फरीदाबाद से 28 वर्षीय राजेश चौधरी की दो साल से बंद पड़ी साँस की नली का सफल ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के बाद मरीज ने खुलकर सांस ली। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद में ईएनटी रोग विभाग के एचओडी एवं सीनियर कंसल्टेंट डॉ. आनंद गुप्ता ने बताया कि सन 2020 में सड़क दुर्घटना के कारण मरीज के ब्रेन में क्लॉट (खून का थक्का जमना) की समस्या हो गई थी। इसके लिए मरीज की शहर के अन्य हॉस्पिटल में ब्रेन सर्जरी की गई। वहां मरीज को लगभग 40 दिनों तक आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखा गया। फिर दोबारा से मरीज को ब्रेन में खून का थक्का जमने की समस्या हुई तो फिर से ब्रेन की सर्जरी की गई। इस कारण मरीज को लगभग 60 दिनों तक आईसीयू में रहना पड़ा। दो बार मरीज के गले में टयूब डाली गई और गले का रास्ता खोला गया। गले में ट्रेकियोस्टोमी सर्जरी करके बाहर से पाइप डाली गई थी। इसके कारण गले में साँस का रास्ता ऊपर से सिकुड़ गया। सांस का रास्ता सिकुड़ने के कारण शुरू के एक साल तक मरीज ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब पर ही रहा। मरीज को साँस आती ही नहीं थी। मरीज ने कुछ लेज़र थेरेपी भी कराई। फिर साँस आने पर मरीज के गले से ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब निकाल दी गई लेकिन मरीज को चलने में काफी परेशानी होती थी क्योंकि थोडा सा चलने पर उसकी साँस फूल जाती थी। जब मरीज हमारे पास आया था तो उस समय उसके गले में ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब नहीं थी और वह सीढियाँ भीं नहीं चढ़ पा रहा था। एमआरआई और सीटी स्कैन कराने पर हमें पता चला कि गले से लेकर फेफड़ों तक जाने वाले साँस का रास्ता लगभग 45 प्रतिशत सिकुड़ा हुआ था। मरीज के फेफड़ों में कोई परेशानी नहीं थी। ठीक से इन्वेस्टिगेशन करने के बाद हमने मरीज के साँस की नली (ट्रेकिआ) लगभग 3.5-4 सेंटीमीटर लंबे ब्लॉक हिस्से को काटकर निकालने का निर्णय लिया। इस प्रोसीजर के दौरान छाती को खोलने के लिए सीटीवीएस (कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी) टीम की मदद ली गई। सांस की नली के बंद हिस्से को गले के निचले हिस्से और छाती के बीच वाले हिस्से से खोलकर हटा दिया। फिर साँस की नली को छाती की साँस की नली से जोड़ दिया। ऑपरेशन सफल रहा। अब मरीज पूरी तरह ठीक है और सामान्य रूप से सांस ले रहा है। चलने-फिरने भी लगा है। स्वस्थ होने पर मरीज को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। मरीज राजेश चौधरी ने ईएनटी रोग विभाग के एचओडी एवं सीनियर कंसल्टेंट डॉ. आनंद गुप्ता और सीटीवीएस (कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी) टीम का तहे दिल से धन्यवाद किया और कहा कि वह अपने घर में इकलौता कमाने वाला इंसान है और साँस की इस समस्या के कारण उसे अपने परिवार के पालन-पोषण को लेकर भी काफी परेशानी हो रही थी। ठीक होने के बाद अब वह अपने काम पर नियमित रूप से जा सकता है।
अगर इलाज में ज्यादा देरी होती तो साँस का रास्ता और भी ज्यादा ब्लॉक हो जाता और छाती में पानी भर सकता था। इस कारण मरीज को न्यूमोनिया हो सकता था और छाती में टीबी हो सकती थी। इससे मरीज की जान जाने का जोखिम बढ़ जाता।
डॉ. आनंद गुप्ता ने कहा कि यह केस काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि बिना छाती खोले मरीज के गले में सांस की नली के बंद हिस्से को निकालना संभव नहीं था। छाती खुलने के बाद हार्ट की सारी ब्लड वेसल्स और नर्वस सामने थीं। इस दौरान अगर कोई भी नस कट या फट जाए तो 4-5 लीटर ब्लड लॉस हो सकता था। साँस के रास्ते कभी सीधे नहीं होते। अगर गले से कोई नर्व कट जाती तो वोकल कॉर्ड पैरालाइज्ड हो जाती है। इस दौरान अगर जोड़ी गई साँस की नली में तनाव हो तो भी साँस की नली फट सकती है जिससे मरीज की जान जा सकती थी। इसलिए बहुत ही सावधानी के साथ गले में सांस की नली के बंद हिस्से को काटकर निकाल दिया और गले एवम छाती के सांस की नली को जोड़ दिया। इस ऑपरेशन में लगभग 7 घंटे का समय लगा। ऑपरेशन सफल रहा। 5 दिन आईसीयू में रहने के बाद स्वस्थ होने पर मरीज को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई। अब मरीज ठीक से साँस ले रहा है और पूरी तरह सामान्य जीवन जी रहा है।
सलाह: जब भी किसी व्यक्ति को किसी समस्या के चलते लंबे समय तक आईसीयू में रहना पड़े तो ईएनटी सर्जन की मदद से मुंह से ट्यूब डालने की बजाय गले में पहले ही ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब डाल दी जानी चाहिए और ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब की ठीक से देखभाल की जानी चाहिए, इससे साँस के रास्ते में मरीज को समस्या नहीं आएगी।