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Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : जोड़ों का दर्द बढ़ती उम्र का हिस्सा माना जाता है, और भारत में कई लोग इसे झेलते रहते हैं, सोचते हैं कि घरेलू नुस्खे या आराम से ठीक हो जाएगा। लेकिन जब दर्द, अकड़न या सूजन लंबे समय तक बनी रहे और दवाओं, फिजियोथेरेपी या घरेलू उपायों से भी राहत न मिले, तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि जोड़ों को गंभीर नुकसान हो चुका है और अब जोइंट रिप्लेसमेंट की जरूरत हो सकती है।
भारत में 50 साल से ऊपर की उम्र के लोगों में जोड़ों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ हिप एंड नी सर्जन्स के अनुसार, देश में हर साल करीब 1.2 लाख नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की जाती हैं, और यह संख्या हर साल लगभग 15% की दर से बढ़ रही है। बढ़ती उम्र, मोटापा, एक्सीडेंट्स और बैठे-बैठे रहने वाली लाइफस्टाइल इसके प्रमुख कारण हैं।
डॉ. राजीव ठुकराल, डायरेक्टर – ऑर्थोपेडिक्स एंड जोइंट रिप्लेसमेंट, यथार्थ हॉस्पिटल, फरीदाबाद ने कहा,“लोग अक्सर जोड़ों के दर्द को उम्र का हिस्सा मानकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन जब यह दर्द आपकी रोज़मर्रा की जिंदगी, चलने-फिरने और आत्मनिर्भरता को प्रभावित करने लगे, तो समय पर सही इलाज लेना बहुत जरूरी हो जाता है। आज के आधुनिक विकल्पों की मदद से मरीज ना सिर्फ दर्द से राहत पा सकते हैं, बल्कि फिर से सामान्य, सक्रिय जीवन भी जी सकते हैं।”
अगर सीढ़ियां चढ़ना, कुर्सी से उठना या कुछ कदम चलना भी दर्दभरा और थकाऊ लगने लगे, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। कई लोगों को घुटनों या कूल्हों में लॉकिंग या अचानक लड़खड़ाने जैसा अनुभव होता है, जिससे रोज़ की गतिविधियाँ जोखिमभरी हो जाती हैं। दर्द अगर आराम करने या सोते वक्त भी बना रहे, तो यह आम बात नहीं है, बल्कि किसी बड़ी परेशानी की चेतावनी है।
अगर सुबह उठते वक्त जोड़ों में आधे घंटे से ज़्यादा समय तक अकड़न बनी रहे, या सूजन आराम, बर्फ या दवाओं से भी न घटे, तो यह ओस्टियोआर्थराइटिस या रूमेटॉइड आर्थराइटिस जैसी बीमारियों की ओर इशारा करता है। इन बीमारियों में जोड़ के अंदर की परत घिस जाती है, जिससे हड्डियाँ आपस में रगड़ खाने लगती हैं और चलना-फिरना तक मुश्किल हो जाता है।
जोइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी में खराब हो चुके जोड़ को हटाकर उसकी जगह आर्टिफिशियल जोड़ लगाया जाता है, जिससे दर्द से राहत मिलती है और चलना-फिरना दोबारा आसान हो जाता है। आजकल की आधुनिक तकनीकों के चलते मरीज़ ऑपरेशन के 1-2 दिन के भीतर वॉकर की मदद से चलने लगते हैं।
बहुत से लोग सोचते हैं कि जोइंट रिप्लेसमेंट आखिरी इलाज होना चाहिए, लेकिन अगर बहुत देर हो जाए, तो सर्जरी मुश्किल हो जाती है और रिकवरी भी धीमी होती है। अगर सही समय पर अनुभवी ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट से सलाह ली जाए, तो कई बार मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या हड्डी के आकार को सुधारने वाली ऑस्टिओटोमी जैसी तकनीकों से भी इलाज हो सकता है, जिसमें अस्पताल में कम दिन रुकना पड़ता है और जल्दी आराम मिलता है।
जोड़ों की परेशानी सिर्फ शरीर को नहीं, जीवन की क्वॉलिटी को भी प्रभावित करती है। सही वक्त पर सही इलाज लेकर लाखों लोग फिर से सक्रिय, दर्दमुक्त ज़िंदगी जी पा रहे हैं। जागरूक रहें, और दर्द को नज़रअंदाज़ न करें।