Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj :13 जुलाई। यूसूफ जो नूंह का रहने वाला था, करीब 10-12 सालों से पैरों में काले-काले चकते पड़ गए थे। जब उसने दिल्ली स्थित एम्स होस्पीटल में दिखाया तो, पता चला कि उसको महादमनी जो ह्रदय से शुरू होती है, उसके अंदर ह्दय एवं पेट में रुकावट थी। इसके लिए सलाह दी गई, महादमनी जो ह््दय से शुरू होती है, वहां से एक नया रास्ता बनाने का सुझाव दिया गया, जिसे बाईपास सर्जरी कहते हैं और वह रास्ता पेट से लाया जाए। यह काफी रिस्की भी हो सकता था और मरीज की जान भी जा सकती थी। इसके बाद मरीज ने यूनिवर्सल अस्पताल में डॉ. शैलेश जैन को दिखाया। डॉ. शैलेश जैन ने अपनी टीम डॉ. रहमान, डॉ. संजीव दिवाकर एवं डॉ. संजय के साथ मिलकर एंजीयोग्राफी की। जिसमेंं पाया कि जो महादमनी ह्रदय से चालू हो रही थी, 90 से 95 प्रतिशत रुकावट थी। मरीज की उम्र करीब 60 वर्ष के आसपास थी। इसमें यह भी देखा गया कि मरीज के अंदर जो पेट के अंदर रक्तवाहिनी होती है, जो दोनों पैरों के लिए फटती है, वहां पर भी रुकावट थी। इसलिए यह तय किया गया कि महादमनी जो ह्रदय से चालू होती है, उसे स्टंटिंग के माध्यम से खोला जाए। पहले उसे बैलूनिंग के माध्यम से फुलाया गया। बैलूनिंग के माध्यम से फुलाने के बाद मरीज को स्टंट डाला गया। 6 हफ्ते बाद जब जब स्टंट अपनी जगह प्लेस हो गया और देखा गया कि स्टंट ढंग से काम कर रहा है और खून की सप्लाई पेट तक आ रही है। इसके बाद पेट से दोनों पैरों को खून की सप्लाई दी गई, जिसे अर्थों फ्यूमरल बाइपास कहते हैं, इसके बाद मरीज के दोनों पैरों में खून का बहाव बहुत अच्छा हो गया और नीचे कालापन भी धीरे-धीरे गायब हो रहा है। डॉ. शैलेश जैन ने बताया कि महादमनी की बीमारी जन्मजात होती है और इसका इलाज जन्म के समय ही करा लेना चाहिए। उन्होंने मरीज को बीड़ी, तम्बाकू का इस्तेमाल न करने की सलाह दी। मरीज यूसूफ के सफल ऑपरेशन के अस्पताल की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. रीति अग्रवाल ने डॉ. शैलेश, डॉ. रहमान, डॉ. पवन, डॉ. संजीव दिवाकर एवं डॉ. संजय को बधाई दी।