Hindutan ab tak special
विजु शाह ने सुदीप डी.मुखर्जी को संगीतकार बना दिया ….!
New Delhi Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : फिल्म इंडस्ट्री में कम्पलीट फ़िल्मकार की मान्यता उन्ही को मिली है जिनमें स्क्रिप्ट,विज़न, म्यूजिक और अपने डायरेक्शन एप्रोच को हूबहू सिल्वर स्क्रीन पर शिद्दत से उतारने की क्षमता हो। फिल्म का जॉनर कोई भी क्यों न हो कांसेप्ट के मुताबिक उसे पेश करने का जूनून और रिजल्ट वाजिब मिले यही फिल्म के निर्देशक की क़ाबलियत होती हैं। इसी श्रंखला में के.आसिफ,मेहबूब खान, वी.शांताराम,बी.आर चोपड़ा,राज कपूर,गुरु दत्त,यश चोपड़ा,राज खोसला,विजय आनंद,सुभाष घई आदि फिल्मकारों की लम्बी फेहरिस्त मौजूद है।
मगर आज मैं आपसे उस शख्स से मिलवाने जा रहा हूँ जिन्हे एक कम्पलीट फिल्म मेकर बनने के लिए स्पॉट बॉय से लेकर फिल्म प्रोडक्शन जैसे जटिल काम करने का लम्बा सफर तय करना पड़ा उन्होंने लेखन और निर्देशन सरीखे संवेदनशील और क्रिएटिव हुनर ही नहीं सीखा बल्कि उसमें अपना लोहा भी मनवाया। उस मल्टी माइंडेड पर्सनालिटी का नाम है सुदीप डी.मुखर्जी।
कई सालों के स्ट्रगल और रंजन कुमार सिंह,लेख टंडन और प्रकाश मेहरा जैसे दिग्गज निर्देशकों की सोहबत में रहकर सुदीप डी.मुखर्जी ने निर्देशन शिल्प की बारीकियां सीखी और मौका और दस्तूर उनके हाथ लगा जिसके तहत बतौर निर्देशक उन्होंने निर्माता बेला गांगुली और कमलेश परमार की फिल्म ‘करवट ‘ से अपने कैरियर का आगाज़ कियाl संजय कपूर,आयशा जुल्का,श्वेता मेनन,जीत उपेंद्र,रजनिका गांगुली और ओमपुरी इसकी स्टारकास्ट थी,इस फिल्म का शानदार मुहूर्त मुंबई के नागि विला में हुआ था। ‘करवट ,’ कम समय में चर्चा का केंद्र बन गई थी,मगर किन्ही अपरिहार्य कारणों से फिल्म शेल्व हो गई ..मगर फिर भी सुदीप डी.मुखर्जी ने हार नहीं मानी वह रुके नहीं और फिर मिलिट्री जवान की भांति अपने अगले मिशन में लग गए…….
उस दौरान उन्होंने विभिन्न विषयों पर अपने मुंबई और कलकत्ता के ऑफिस में बैठकर पूरे ७८ फिल्मों की कहानी,पटकथाएँ,संवाद और सिचुएशनल गीत भी लिख लिए।
फिर भाग दौड़ कर अपने सेकंड इनिंग की तैयारी की वक़्त ९० के सिनेमा से सुदीप बहुत प्रभावित थे कहानी,स्टाइल,एक्शन और म्यूजिक को लेकर उनके दिमाग में एक्शन म्यूजिकल बेस्ड फिल्म का खाका खिच गया। अब सवाल उठा कि इनके फिल्म के खाके को साकार करने प्रोडूसर की कमान कौन संभाले ?
उनकी मेहनत दिशा निर्देश और कुछ अलहदा करने के जूनून को देखते हुए अभिनेत्री रजनिका गांगुली के पिताश्री और सुदीप डी.मुखर्जी के ससुर श्री एन .एन .गांगुली ने फायनेंस किया और फिल्म की निर्मात्री रजनिका गांगुली को बनाया। जीत उपेंद्र,रजनिका गांगुली,तेज सप्रू ब्रिज गोपाल,शिवा और कुछ उभरते और नये कलाकारों को लेकर ९० के फ्लेवर को लेकर फिल्म ‘चट्टान ‘की शुरुआत हुई और अब यह फिल्म कम्पलीट हो गई है और २२ सितम्बर १९२३ को सर्वत्र भारत में रिलीज़ होने जा रही है। नृत्य निर्देशन,गीतकार,संगीतकार,कथा,पटकथा,संवाद, संपादन और निर्देशक सुदीप डी.मुखर्जी से उनकी रिलीज़ होने जा रही फिल्म चट्टान को लेकर उनके मुंबई स्थित ऑफिस में लम्बी अंतरंग बातचीत हुई….यहाँ प्रस्तुत हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश :
चट्टान अब रिलीज़ पर है और यह आपके कैरियर की पहली फिल्म है कैसा महसूस कर रहे हैं?
-“बस यूँ ही समझ लीजिये की सालों की प्रसव पीड़ा से मुक्त हुआ हूँ और अब उसके रिजल्ट का हम सबको इंतज़ार है lएक तरफ घबराहट है तो दूसरी और कॉन्फिडेंस क्योंकि हर दृष्टि से फिल्म तो उम्दा बनी है आगे अब ऑडियंस पर निर्भर करता है”।
सुनने में आया है कि आपने चट्टान को ९०के फ्लेवर में बनाया है क्योंकि उस दौर की फिल्मों से आप बेहद प्रभावित रहे हैं आपने उस रंग को अपनी फिल्म मे किस तरह इस्तेमाल किया है जरा विस्तार से बतायेंगे ?
“हाँ यह बिलकुल सच है कि चट्टान बनाने से पहले ही मेरा विजन साफ रहा कि मैं अपनी फ़िल्म का परिवेश,पात्रों का चरित्र चित्रण वेशभूषा,भाषा,म्यूजिक और ट्रीटमेंट के अतिरिक्त फिल्ममेकिंग भी ९०के काल की रखूँगा…मेरी फिल्म में तकनीकी पक्ष भी वैसी रही है ड्रोन,आधुनिक ट्रोलिज़ और बनावटी लेंस,थोक के भाव मे VFX ये सब आपको बिलकुल नज़र नहीं आएंगे।”
आपकी फिल्म की हीरोइन रजनिका ने हाल ही बताया कि आपने उस दौर के पुलिस इंस्पेक्टर की पत्नी के रोल में वास्तविकता लाने की गरज़ से उनसे वजन बढ़वाया क्या यह सच है ?
“जैसा कि मैंने आपको बताया चट्टान की पृष्ठभूमि ९० के मध्यप्रदेश के कस्बे में रहने वाले एक जाँबाज़ पुलिस अफसर के इर्दगिर्द विचरती एक सच्ची कहानी पर आधारित है उसे अपनी गर्भवती पत्नी के होते हुए भी सिस्टम और समाज के ठेकेदारों से अपने फ़र्ज़ से जंग लड़नी पड़ती है उसका परिवार कैसा पिस कर रह जाता है…उन सीन्स को नेचुरल दिखाने के लिए मुझे मध्य प्रदेश की औरतों का रहन सहन दिखाना था और उनकी वस्तुगत स्थिति इसलिए कैरेक्टर की मांग देखते हुए रजनिका ने ७०किलो से अपना वजन ९० किलो यानि २० किलो बढ़ाया। जिसकी वजह से वह फ़िल्म का असली किरदार लग पाई।”
अपनी एक्शन Drama फिल्म ‘चट्टान’ के जरिये आप ऑडियंस को क्या कहना चाहते हैं?
“90 के सिनेमा के बैकड्रॉप पर बनी फिल्म ‘चट्टान ‘का नायक एक इमानदार,जांबाज़ पुलिस अफसर है,उसे और उसके परिवार को सच्चाई और अपने कर्तव्य के खातिर सिस्टम के खिलाफ जाकर कितना संघर्ष करना पड़ता है किन किन मरहलों के बीच गुज़रना पड़ता है इस भिड़ंत में उसे क्या कुछ गंवाना पड़ता है यही ‘चट्टान’में दिखाया गया है।
-कैरियर के लिहाज़ से’ चट्टान’ निर्देशक के रूप में आपकी पहली फिल्म है तो क्या वजह रही कि आपने इसमें सेलेबल स्टारकास्ट नहीं ली कमर्शियली आपको इसमें दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा ?
-“बेशक कैरियर के फर्स्ट ब्रेक के हिसाब से यह फिल्म आम तौर पर रिस्की कदम हो सकता है पर मेरी अपनी आइडियोलॉजी के लिहाज़ से नहीं। चट्टान का सब्जेक्ट कोई नया या अजूबे वाला नहीं है,पर इसके कांसेप्ट को जो मैंने ट्रीटमेंट फिल्म के तौर पर जिन ऐंगल्स से पेश किया है वो ही इसका यूएसपी साबित होगा वह मुझे विश्वाश है,रहा सवाल सेलेबल स्टारकास्ट लेने का…मैं इसका पक्षधर नहीं हूँ क्योंकि फ़िल्में कल भी कंटेंट पर चलती थी और आज की ऑडियंस भी कंटेंट पर आधारित फिल्मों को ही वरीयता देती है। चूँकि मेरे किरदार समाज के प्रतिनिधि हैं उनमें मैं टाइप्ड इमेज में कैद आर्टिस्ट्स को कास्ट नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने जीत उपेंद्र और रजनिका गांगुली को सेलेक्ट किया जिन्होंने न्यायसंगत अभिनय किया है दोनों ही प्रोफेशनल एक्टर्स हैं वो फिल्म की भाषा चलन और कैमरे की आँख से भलीभांति परिचित रहे हैं इसलिए मुझे किंचित मात्र भी यह नहीं लगा कि मेरी फिल्म में नोटेड एक्टर्स नहीं हैं ….इसके अतिरिक्त तेज सप्रू,ब्रिज गोपाल और शिवा ने बढ़िया काम किया है।,”
आपने अपनी पहली फिल्म में लेखन निर्देशन के अतिरिक्त नृत्य निर्देशन गीत लेखन संपादन और संगीत निर्देशन जैसे अहम पक्षों की जवाबदेही संभाली है क्या यह व्यवसायिक दृष्टि से रिस्की नहीं है।
-जो लोग फिल्मों को अपना ओढ़ना,बिछोना,खाना,पीना की तरह अपना सर्वस्य मानते हैं उनका फिल्म मेकिंग की किसी भी विधा में दक्ष होना कोई ताज्जुब नहीं है। राज कपूर,विजय आनंद,सुभाष घई,राज खोसला ऐसे फ़िल्मकार हमारे उदाहरण रहे हैं जिन्होंने निर्देशन के अलावा कई विभाग सफलता पूर्वक संभाले हैं यह बात और है कि उन्होंने पब्लिसिटी में क्रेडिट नहीं ली। मैं उन्ही लोगो में से एक हूँ फ़िल्म के हरेक पक्ष से कई सालों से जुड़ा रहा हूँ इसलिए मैंने लेखन,निर्देशन के अलावा जो दायित्व लिए हैं उनमें कम्फर्ट फील करता हूँ और सब ठीक ठाक हुआ भी है।
चट्टान के म्यूजिक के लिए आपने कल्याणजी-आनंदजी को एप्रोच किया था फिर क्या वजह रही कि आप ही संगीतकार बन गए ?
दरअसल ‘चट्टान ‘मेरी पहली होम प्रोडक्शन फिल्म है इसलिए ९० के म्यूजिक की मुझे दरकार थी एक एक सिचुएशन को लेकर निर्देशक के नाते सभी गाने मेरे दिलों दिमाग में थे इसलिए मैंने कल्याण जी भाई से मिला उन्होंने बड़ी शालीनता से यह कहकर इंकार कर दिया कि अब हम म्यूजिक नहीं करते, हाँ आप चाहो तो मेरा बेटा विजु शाह से मिल लो। हम विजु शाह से मिले उन्होंने बड़े प्यार से मेरे सब्जेक्ट सुना गानों की ज़रूरतों को समझा..सिटिंग के दौरान उन्होंने मुझमें ऐसा क्या देख लिया और तपाक से बोले आपके नरेशन से मुझे लगता है कि इस फिल्म का आपसे बेहतर संगीतकार कोई नहीं हो सकता। बस विजु शाह की हौसला अफ़ज़ाई ने मुझे संगीतकार बना दिया। ऊपरवाले की कृपा है कि ९० के फ्लेवर के जो गाने मैंने कम्पोज किये हैं उन्हें सराहना भी मिली है.. सबसे बड़ी बात मेरे हक़ में यह रही कि कुमार सानु,देवाशीष दासगुप्ता,प्रिया भट्टाचार्या,प्रीथा मजुमदार जैसे सिंगर्स ने ९० का खूब रंग मेरे गानों में जमाया है।