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Faridabad NCR

लापता बच्चों की खोज को आसान बनायेगा जे.सी. बोस विश्वविद्यालय

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Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 27 अगस्त जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद ने सामाजिक सरोकार के लिए अपनी प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में कदम उठाया है। विश्वविद्यालय मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी का उपयोग कर लापता बच्चों का पता लगाने की स्पीच क्लैरिफिकेशन तकनीक विकसित करेगा।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् ने विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर इंजीनियरिंग विभाग को इस शोध परियोजना के लिए स्वीकृति तथा फंड आवंटित किया है। कम्प्यूटर इंजीनियरिंग विभाग से प्रो. आशुतोष दीक्षित शोध परियोजना में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर होंगे, जबकि डॉ. प्रीति सेठी और पुनीत गर्ग इस प्रोजेक्ट में को-प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर होंगे। इस परियोजना की अवधि तीन वर्ष है।
कुलपति प्रो दिनेश कुमार ने समाज से जुड़े गंभीर विषय पर विभाग द्वारा शोध परियोजना के लिए की गई पहल की सराहना की है और कहा है कि बच्चों की गुमशुदगी समाज की प्रमुख समस्याओं में से एक हैं और यह महानगरीय शहरों में ज्यादा है जहां माता-पिता दोनों नौकरीपेशा हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस पहल से विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं शोधार्थियों को मशीन लर्निंग जैसी उभरती हुई तकनीक पर काम करने और समाज को समाधान प्रदान करने का अवसर मिलेगा। राज्य सरकार के उभरते अनुसंधान विश्वविद्यालय से समाज के लिए ऐसे समाधान अपेक्षित है। प्रस्तावित साफ्टवेयर से निश्चित रूप से पुलिस अधिकारियों की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी और लापता बच्चों को खोजने के मामले में तेजी से काम होगा।
देश में लापता बच्चों के सर्वेक्षण के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए परियोजना में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रो. आशुतोष दीक्षित ने कहा कि हर दिन 174 बच्चे, जिसमें अधिकतर 6 वर्ष की आयु से कम उम्र के होते है, विभिन्न कारणों से लापता हो जाते है। लेकिन जब ऐसे लापता बच्चे पुलिस को मिलते है तो वे एक घबराहट और डर की स्थिति में होते हैं और स्पष्ट रूप से कुछ बता पाने में सक्षम नहीं होते क्योंकि वे डर कारण हकलाने लगते हैं। इसलिए, ऐसे बच्चों की मदद के लिए स्पीच क्लैरिफिकेशन सॉफ्टवेयर की तत्काल आवश्यकता है जो इन डरे हुए बच्चों को अपना सही विवरण बताने में मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित सॉफ्टवेयर से ऐसे बच्चे अपना सही विवरण देने में सक्षम होंगे, जिससे पुलिस को उनके अभिभावकों को खोजने में आसानी होगी।

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