Faridabad NCR
अंग दान कर सबसे छोटे बेटे ने बचाई माँ की जान
Faridabad Hindustanabtak.com/Dinesh Bhardwaj : अक्सर देखा जाता है कि बच्चे के प्राण संकट में आ जाए तो माँ अपने कलेजे के टुकड़े को बचाने के लिए अपने खुद के जीवन को भी दाब भी लगा देती है। लेकिन जब कलेजे का टुकड़ा ही अपने कलेजे का टुकड़ा देकर माँ को ही जिंदगी लौटा दे तो माँ के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में हाल ही में ऐसा ही मामला आया जहाँ माँ के दुलारे ने अपने कलेजे का टुकड़ा देकर माँ को मौत के मुंह से निकाल दिया। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. पुनीत सिंगला ने बताया कि हमारे पास लिवर की एंड स्टेज बीमारी से ग्रस्त पंजाब निवासी 64 वर्षीय गीता बजाज बेहद गंभीर हालत में आईं। मरीज के शरीर की मांसपेशियां कमजोर थीं, हेपेटिक एन्सेफ्लोपैथी (दिमाग संबंधित रोग जो लिवर मरीज में होता है) और पीलिया की गंभीर समस्या थी। मरीज पिछले कुछ सप्ताह से बेड पर ही थी, वाशरूम जाने की हालत में भी नहीं थी। मरीज की हालत के मद्देनज़र समय बीतने के साथ साथ परिजन को भी मरीज की जान बचने की आस कम होती जा रही थी। माँ को जिंदगी और मौत से लड़ता देख दोनों छोटे बेटे लिवर देने आगे आये। मेडिकल फिट सबसे छोटे बेटे पारस बजाज (35 वर्षीय) ने माँ को लिवर दिया और फिर मरीज का सफलतापूर्वक लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। स्वस्थ होने पर मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया।
डॉ. पुनीत ने बताया कि यह केस काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मरीज लिवर की एंड स्टेज में आई थी। लिवर ट्रांसप्लांट करने में लगभग 10-12 घंटे का समय लगा। ट्रांसप्लांट होने के बाद मरीज ने तेजी से रिकवरी की। मरीज अब पूरी ठीक है और चल-फिर रही है। डोनर भी पूरी तरह से स्वस्थ है। बता दें कि डोनर से मरीज में लगाया जाने वाला लिवर का हिस्सा आकार में बढ़ जाता है और डोनर के शरीर में बचा लिवर का हिस्सा भी फिर से बढ़ जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर का एकमात्र ऐसा अंग है जो फिर से आकार में बढ़ जाता है। इस खासियत के कारण ही लिवर ट्रांसप्लांट प्रोसीजर किया जाता है।
ऑर्गन डोनेशन बहुत जरूरी है। एक इंसान अपने अंगदान करके कई लोगों का जीवन बचा सकता है। लिवर फेलियर, किडनी फेलियर, हार्ट फेलियर, लंग फेलियर के मरीजों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है क्योंकि बिना ऑर्गन ट्रांसप्लांट के ऐसे मरीज लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं। ऑर्गन ट्रांसप्लांट से ऑर्गन पाने वाला मरीज न केवल लम्बे समय तक जीवित रह सकता है बल्कि उसकी जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार हो जाता है और वह भी अन्य लोगों की तरह सामान्य जिंदगी जी सकता है। भारत में ऑर्गन की मांग बहुत ज्यादा है, वहीं दूसरी तरह अपनी इच्छा से ऑर्गन डोनेट करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है। ऑर्गन डोनेशन से इस गैप को कम किया जा सकता है।