Faridabad NCR
जे.सी. बोस विश्वविद्यालय में महिलाओं के प्रति भेदभाव विषय पर कार्यशाला का आयोजन
Faridabad Hindustan ab tak/Dinesh Bhardwaj : 9 दिसंबर। जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद के महिला प्रकोष्ठ की आंतरिक शिकायत समिति द्वारा महिलाओं के खिलाफ भेदभाव विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक के गणित विभाग की प्रो. रेणु चुघ कार्यशाला में आमंत्रित अतिथि वक्ता रहीं। सत्र की अध्यक्षता कुलसचिव डॉ. एस.के. गर्ग ने की। कार्यशाला का संचालन महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षा प्रो. नीतू गुप्ता एवं प्रकोष्ठ की सदस्य डॉ. अनुराधा शर्मा द्वारा किया गया।
कार्यशाला का उद्देश्य महिलाओं के प्रति भेदभाव से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों तथा इस बात पर चर्चा करना था किएक लैंगिक-तटस्थता कैसे उत्पन्न की जाये ताकि महिलाओं के जीवन एवं कार्यस्थल पर लैंगिक जागरूकता तथा संवेदनशील वातावरण बनने में मदद मिले।
कार्यशाला की शुरुआत प्रो. नीतू गुप्ता के स्वागत भाषण से हुई, इसके बाद कुलसचिव डॉ. एस.के. गर्ग ने विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने समृद्ध भारतीय संस्कृति का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय समाज में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सर्वोच्च रही है लेकिन किन्हीं कारणों से इसमें गिरावट आई और इस तरह के मुद्दे उत्पन्न हो गये। उन्होंने लिंग-विशिष्ट संवेदनशीलता को समझने की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि यह हमें अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण और विश्वासों की जांच करने में मदद करता है। उन्होंने यह भी कहा कि पुरुषों और महिलाओं को एक ऐसी संस्कृति बनानी चाहिए जो अब कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को बर्दाश्त न करें। उन्होंने महिला सुरक्षा पर विभिन्न अधिनियमों के प्रावधानों के प्रति कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिए नियमित अंतराल पर ऐसी कार्यशालाओं और जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन के लिए महिला प्रकोष्ठ के प्रयासों की सराहना की।
सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. रेणु चुघ ने वास्तविक जीवन के उदाहरण देकर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव की व्याख्या की और फिर इस मुद्दे के कारणों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि लैंगिक समानता होने पर ही समाज सही अर्थों में प्रगति कर सकता है। समाज में महिला सुरक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता की जरूरत है, तभी महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा नहीं होगी। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून तब तक इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है जब तक पुरुषों की मानसिकता सामान्य रूप से नहीं बदलेगी। साथ ही, कोई भी कानून तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि महिलाओं की बुनियादी मानवीय गरिमा को महिलाओं द्वारा मान्यता और सम्मान नहीं दिया जाता।
उन्होंने लैंगिक समानता और यौन उत्पीड़न की रोकथाम पर भारत के संविधान और भारतीय कानूनों के प्रावधानों के बारे में भी बताया। उन्होंने ऑनलाइन यौन उत्पीड़न (साइबर स्टॉकिंग, साइबरबुलिंग और हैकिंग) के बारे में भी बताया और उन्होंने चर्चा की कि साइबर अपराध की रिपोर्ट कैसे की जाए। सत्र के अंत में डॉ. मेहा शर्मा ने आमंत्रित वक्ता प्रो. रेणु चुघ को धन्यवाद ज्ञापित किया।